झारखंड में सिस्टम कैसे काम कर रहा है, इसका उदाहरण है सुबोध. वह प्लस टू शिक्षक के लिए परीक्षा देता है. मेधावी छात्र है, पर परीक्षा में उसे फेल करार दे दिया जाता है. बहुत से छात्र यह मान कर संतोष कर लेते कि उन्होंने मेहनत की, पर शायद किस्मत खराब थी. लेकिन सुबोध चंद्र महतो ऐसा नहीं था. उसे खुद पर भरोसा था. उसने जैक से अपील की कि उसकी कॉपी की फिर से जांच करायी जाये.
सुबोध ने आरटीआइ का सहारा लिया. इसमें भी उसे परेशान किया गया, पर उसने हिम्मत नहीं हारी. अंतत: जैक ने कॉपी की जांच करायी और सुबोध राज्य का सेकेंड टापर निकला. यह सब करने में काफी समय बीत गया और पास होने के बावजूद सुबोध नौकरी के लिए भटक रहा है. इसे कहते हैं अन्याय. यह संकेत है कि झारखंड में नियुक्ति परीक्षाओं में किस तरह गड़बड़ी की जाती है. सबसे दुखद बात यह है कि कॉपी की जांच ही नहीं हुई थी और उसे फेल करार दे दिया गया. जांच का विषय तो यह है कि किसने ऐसा किया. क्या कॉपी के ऊपर बगैर जांचे नंबर लिखा गया है या कापी पर कोई नंबर ही अंकित नहीं है और मेरिट लिस्ट बनाते समय अंदाज से कुछ नंबर भर दिया गया.
किसने ऐसा किया? इस एक उदाहरण से जैक के पूरे रिजल्ट पर सवाल उठ गया है. क्या सिर्फ सुबोध के साथ ऐसा किया गया या फिर अन्य परीक्षार्थियों के साथ भी मजाक हुआ है. हो सकता है कि कुछ और छात्रों की कॉपी की जांच भी नहीं हुई हो और अंदाज से नंबर देकर उन्हें फेल कर दिया गया. अगर ऐसा हुआ है, तो यह अन्याय है. जिस व्यक्ति को नौकरी में होना चाहिए था, वह सड़क पर घूम रहा है. जिसे बाहर होना चाहिए था, वह शिक्षक बन गया है.
यह बड़ी गड़बड़ी है. हो सकता है कि इसमें कोई बड़ा गिरोह काम कर रहा हो. जिस शिक्षक ने बगैर कापी जांचे एक युवक को फेल कर दिया, वह अपराधी है. उसने किसी के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है. ऐसे शिक्षक या कर्मचारी-अधिकारी जांच के बाद अगर दोषी पाये जाते हैं, तो इन्हें न सिर्फ नौकरी से बाहर करना चाहिए, बल्कि जेल भेजना चाहिए. इससे जैक की भी साख गिरी है. जेपीएससी तो पहले से ही बदनाम रहा है और अब जैक में भी वही हो रहा हो. इस मामले में दोषी को चिह्न्ति कर सजा दी जाये.