।। शैलेश कुमार ।।
(प्रभात खबर, पटना)
मेरे पड़ोस में रहनेवाले एक अंकल-आंटी सुबह-सुबह आगबबूला दिख रहे थे. आज ‘चोर’ ने उनके बगीचे से फूल ही नहीं, बल्कि गेंदे का पौधा भी गायब कर दिया था. इस दौरान कब मेरा मन 15 साल पीछे चला गया, मुझे पता ही नहीं चला. मेरे घर के बगीचे से भी रोज फूल गायब हुआ करते थे. रोज सुबह हमें केवल कलियों के ही दर्शन हो पाते थे. एक दिन चोर को पकड़ने के लिए हम सुबह साढ़े तीन बजे ही जग गये. जब दूसरी मंजिल से नीचे झांका, तो कुछ लोग फूल तोड़ते दिख गये. हमारी आवाज सुन वे चहारदीवारी लांघ कर भाग निकले. उस दिन हमें पौधों में कुछ फूलों के दर्शन हुए.
दअरसल, ये चोर नहीं, ईश्वर भक्त थे. अपने इष्ट देवी-देवताओं को पुष्प अर्पित करने के लिए फूल चुराते थे. उसी दिन मैंने अपने दोस्त से पूछा कि चोरी करके चढ़ाये गये फूल से भगवान क्या खुश होते होंगे? जो लोग चोरी करके फूल भगवान को अर्पित कर भी देते होंगे, वे भगवान के सामने किस मुंह से दुआ मांगते होंगे? एक तो फूल की रिश्वत और वह रिश्वत भी चोरी की? या फिर उन्हें पूरा भरोसा है कि भगवान भी कानून की तरह आंखें मूंदे रहते हैं. जब भक्त घंटी बजा कर उठाते हैं, तो उनकी आंखें खुलती हैं.
ऐसा ही एक वाकया करीब चार वर्ष पूर्व देश के सबसे अमीर मंदिरों में से एक तिरुपति बालाजी मंदिर में देखने को मिला. जल्दी दर्शन के लिए आठ घंटे लाइन में लग कर तीन सौ रुपये का टिकट खरीदा और मिल गया अगली सुबह तीन बजे दर्शन का समय. हम दो दोस्त समय पर पहुंच गये मंदिर में. सैकड़ों लोग मंदिर में जमा हो गये और दरवाजा बंद कर दिया गया. पता चला कि भगवान सो रहे हैं. उन्हें जगाने के लिए ढोल, बाजा, शहनाई, घंटा सब एक साथ बज उठे. पांच मिनट ही बीते थे कि मेरा दोस्त चक्कर खाने लगा. उसे किसी तरह घसीट कर मैं बाहर ले गया. दो मिनट और रुकता, तो शायद मैं भी बेहोश हो जाता. पता चला कि भगवान को जगाने का यह कार्यक्रम रोज एक घंटे तक चलता है.
अब खुद का एक उदाहरण. हाल ही एक मंदिर में गया. बाहर ही बड़े-बड़े अक्षरों में चेतावनी लिखी थी, ‘‘जूते-चप्पल की रक्षा स्वयं करें.’’ जितनी देर मंदिर में था, ध्यान चप्पलों में ही लगा रहा, क्योंकि कुछ दिन पहले ही नयी जोड़ी खरीदी है. अंत में रहा नहीं गया, तो भगवान से यही दुआ मांग ली कि बाहर निकलूं, तो मेरी चप्पलें मुङो मिल जायें. दुआ कबूल भी हुई. मेरे दोस्त की चप्पलें गायब, पर मेरी अपनी जगह पर थीं. मन में कई सवाल खड़े होते हैं. जब मन सच्च नहीं, तो भगवान से प्रार्थना करने की हिम्मत कहां से आती है? जो हैसियत नहीं, उससे ज्यादा भगवान को अर्पित करने का विचार कैसे मन में आता है? किसी के दिल को ठेस पहुंचा कर भगवान को कैसे खुश कर सकते हैं? आखिर जवाब भी एक मंदिर की दीवार पर ही लिखा मिला, ‘इनसान बनो’.