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रेल बने बेहतर
भारतीय रेल को आधुनिक स्वरूप प्रदान करनेवाले प्रमुख लोगों में शुमार डॉ इ श्रीधरन ने कहा है कि रेल विभाग को बुलेट ट्रेन की जगह मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर, गुणवत्ता और सुविधाओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. दुनिया की सबसे बड़ी रेल प्रणाली होने के बावजूद भारतीय रेल की गिनती बेहतरीन व्यवस्थाओं में नहीं होती […]
भारतीय रेल को आधुनिक स्वरूप प्रदान करनेवाले प्रमुख लोगों में शुमार डॉ इ श्रीधरन ने कहा है कि रेल विभाग को बुलेट ट्रेन की जगह मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर, गुणवत्ता और सुविधाओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. दुनिया की सबसे बड़ी रेल प्रणाली होने के बावजूद भारतीय रेल की गिनती बेहतरीन व्यवस्थाओं में नहीं होती है.
लगभग 13 लाख से अधिक कर्मचारियों के साथ 17 क्षेत्रीय और 68 मंडलों में बंटा यह तंत्र प्रतिदिन तकरीबन 20 हजार गाड़ियां परिचालित करता है. इस विशालकाय व्यवस्था पर लगातार बढ़ते बोझ की तुलना में पटरियों, सिग्नल प्रणाली, सुरक्षा और यात्री सुविधाओं में वृद्धि की गति बेहद धीमी रही है. स्टेशनों और गाड़ियों में बुनियादी जरूरतों का भी ख्याल नहीं रखा जाता है.
रेल की आमदनी का सबसे बड़ा जरिया माल ढुलाई है, पर उसमें भी इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति लचर है. सरकारें बदलती रहीं, मंत्री आते-जाते रहे, अनेक समितियों का गठन हुआ, पर रेल की दशा और दिशा में प्रगति की रफ्तार धीमी ही बनी रही. ऐसे में रेल प्रबंधन को अपनी प्राथमिकताओं का निर्धारण करने की जरूरत है. बुलेट ट्रेन या ऐसी ही अन्य पहलों से किसी को गुरेज नहीं है. डॉ श्रीधरन भी मानते हैं कि शायद एक दशक बाद बुलेट ट्रेनों की जरूरत हो. अगर हम आगामी वर्षों में भारी लागत से एक या दो बुलेट ट्रेन चला भी लेते हैं, तो इससे पूरी रेल को बेहतर नहीं बनाया जा सकता है.
उन्होंने रेल कर्मचारियों को भी परियोजनाओं से पूरी तरह से जुड़ कर काम करने की सलाह दी है ताकि उन्हें कम समय और लागत में पूरा किया जा सके. परियोजनाओं में देरी भारतीय रेल के घाटे के लिए भी दोषी हैं तथा बेहतरी के प्रयासों में बड़ा अवरोध भी. रेल भारतीय अर्थव्यवस्था और जन-जीवन का आधारभूत स्तंभ है. देश के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के साथ इसका गहरा संबंध है.
श्रीधरन जैसे अनुभवी और नामचीन विशेषज्ञों की सलाह पर हमारे रेल प्रबंधकों को पूरा ध्यान देना चाहिए. यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि रेल में बड़े व्यापक सुधारों की कोशिश एवं बुलेट ट्रेन जैसी परियोजनाओं के बीच कोई बड़ा विरोधाभास नहीं है, और न ही ये एक-दूसरे की राह में बाधक हैं.
मामला बस इतना है कि रेल मंत्रालय, नीति-निर्धारक और प्रबंधक उन मसलों को प्राथमिकता दें जिनकी वजह से रेल अपनी पूरी क्षमता से सेवा नहीं दे पा रही है और उसके वित्तीय स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है. इस उम्मीद से भी देश का ध्यान आगामी रेल बजट पर होगा.
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