दैनिक जीवन में मेहनत करके जीविका कमानेवाले निम्न आय वर्गीय परिवारों के लिए केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना मनरेगा उम्मीद की किरण साबित हुई है. यह न सिर्फ लाखों वंचित परिवारों का पेट पाल रहा है, बल्कि उनके लिए उन्नति की नयी राहें भी दिखा रहा है. ग्रामीण समाज में व्याप्त कुपोषण, गरीबी तथा बेकारी की समस्या में कमी लाने की दिशा में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है.
यह योजना इसलिए भी लाभकारी है क्योंकि अब लोगों में रोजगार की घुमंतु प्रवृत्ति पर रोक लगी है. साथ ही, इस क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी उनके स्वावलंबन की दिशा में एक कारगर कदम साबित हो रहा है. कुछ महिलाएं मजबूरन पति पर निर्भरता छोड़ स्वयं घर चलाने की जिम्मेदारी भी ले रही हैं. यह अच्छा कदम है.
मनरेगा रोजगार का सृजनकर्ता है. यह मजदूरों को सौ दिनों के रोजगार के एवज में बेरोजगारी-भत्ते की गारंटी भी देता है. हां, समय के साथ सरकार की अन्य योजनाओं की तरह यह भी भ्रष्टाचार के ग्रहण से बच न सका, लेकिन जॉब कार्ड की ऑनलाइन व्यवस्था और अब मजदूरों के बैंक खातों में सीधी राशि भेजने का प्रयास, इस दिशा में अंकुश लगाने का सार्थक कदम है.
कुछ नौसिखिये ठेकेदार मनरेगा में लूट की बुनियाद पर खुद की तरक्की का सपना देखते हैं. दिक्कत यहीं पर है. दूसरी तरफ, मनरेगा के अंतर्गत मजदूरों के श्रम मूल्य का राज्यवार असमान वितरण है. यह तो मानव के श्रमबल का मजाक ही है. बावजूद इसके यह योजना कल्याणकारी है. बहुत हद तक सफल भी. अगर न होती, तो 10 वर्ष पूरे होने पर इसकी सफलता के श्रेय लेने के लिए यूपीए और एनडीए के बीच होड़ न मचती. जरूरत उचित क्रियान्वयन और पारदर्शिता लाने की है. सरकार नियमित मॉनिटरिंग कराये, तो कुछ बात बने. Àसुधीर कुमार, गोड्डा