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द अफ्रीका में बैकफुट पर भारत

।। अभिषेक दुबे।। (वरिष्ठ खेल पत्रकार) टीम इंडिया को धोनी ने हाल के वर्षो में हर मोरचे पर कामयाबी दिलायी. टेस्ट में नंबर एक देश बनाया, वनडे में वल्र्ड कप से लेकर चैंपियंस ट्रॉफी का विजेता बनाया और टी20 वल्र्ड कप चैंपियन बनाया. धोनी निसंदेह इतिहास के महान कप्तानों में गिने जायेंगे, लेकिन महानतम कप्तानों […]

।। अभिषेक दुबे।।

(वरिष्ठ खेल पत्रकार)

टीम इंडिया को धोनी ने हाल के वर्षो में हर मोरचे पर कामयाबी दिलायी. टेस्ट में नंबर एक देश बनाया, वनडे में वल्र्ड कप से लेकर चैंपियंस ट्रॉफी का विजेता बनाया और टी20 वल्र्ड कप चैंपियन बनाया. धोनी निसंदेह इतिहास के महान कप्तानों में गिने जायेंगे, लेकिन महानतम कप्तानों में शुमार होने के लिए एक और पहलू पर काम करना जरूरी है, वह है विदेशी जमीन पर टेस्ट क्रिकेट में कामयाबी. वल्र्ड कप 2011 में जीत के बाद धोनी का यह सपना पहले इंग्लैंड और फिर ऑस्ट्रेलिया में हवा हुवा. चैंपियंस ट्रॉफी 2013, वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जीत और युवा तुर्क की कामयाबी के बाद दक्षिण अफ्रीका में एक बार फिर से उम्मीद जगी है. सवाल है कि क्या हम फिर यह मौका गंवा देंगे. कम-से-कम वनडे के नतीजों से तो यही लगता है.

धोनी की युवा सेना में धार और रफ्तार है. रोहित शर्मा और विराट कोहली के तौर पर दो ऐसे बल्लेबाज हैं, जो वल्र्ड क्लास हैं. शिखर धवन और मुरली विजय की सलामी जोड़ी में अनुभव की कमी तो हो सकती है, लेकिन हौसले की नहीं. सौराष्ट्र के बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा को ‘राहुल द्रविड़ इन मेकिंग’ माना जा रहा है, तो अश्विन संभावित बॉलिंग ऑल-राउंडर हैं. समी की गेंदबाजी में धार और रफ्तार है, तो अनुभव भुवनेश्वर कुमार को बेहतर गेंदबाज बनायेगा. इन सबके बावजूद टीम इंडिया का ‘मिशन’ दक्षिण अफ्रीका में खतरे में दिखता है, क्योंकि अमीर क्रिकेट बोर्ड के अहंकार ने बेड़ा गर्क कर रखा है.

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के मुखिया श्रीनिवासन को गुस्सा क्यों आया? क्योंकि दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट बोर्ड ने हारून लोरगाट को अपना सीइओ चुन लिया और श्रीनिवासन को लोरगाट पसंद नहीं. यह बड़ी विचित्र सी बात है. इसके बाद बीसीसीआइ ने प्रस्तावित दक्षिण अफ्रीका दौरे के कार्यक्रम को न सिर्फ मानने से इनकार कर दिया, बल्कि कतर कर तीन वनडे और दो टेस्ट मैच का कार्यक्रम कर दिया. दक्षिण अफ्रीका में भारत अब तक एक भी सीरीज नहीं जीता है. वहां के विकेट की चुनौतियां अलग और मुश्किल हैं और मौजूदा टीम के अधिकतर सदस्यों को वहां का अनुभव नहीं है.

शिखर धवन ने एक साल से कम समय में हर किसी का दिल जीता है, लेकिन वे अब तक एक टेस्ट मैच भी विदेश में नहीं खेले हैं. आइपीएल के दूसरे सत्र में दक्षिण अफ्रीका में मुरली विजय ने अहम पारियां खेलीं, लेकिन टेस्ट के स्तर पर वे नये हैं. पुजारा के पास मजबूत तकनीक है, लेकिन मुश्किल विकेट पर शॉर्ट गेंद में उन्हें अभ्यस्त होने की जरूरत है. रोहित शर्मा ने घरेलू मैच में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपने टेस्ट कैरियर का जबरदस्त आगाज किया. विराट कोहली ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट में शतक बना चुके हैं, लेकिन कोहली ने भी अधिकतर कामयाबी भारत या फिर भारत जैसे माहौल में पायी है. अनिल कुंबले को विदेशी जमीन पर भारतीय गेंदबाजी का ट्रंप कार्ड पाने में कई साल लग गये, अश्विन को भी उस स्तर पर पहुंचने के लिए अंतराष्ट्रीय विकेट पर अधिक-से-अधिक अनुभव चाहिए.

मॉडर्न मैनेजमेंट का एक फलसफा है, आप तैयारी करके फेल हो सकते हैं, लेकिन तैयारी करने में फेल नहीं हो सकते. हम सब चाहेंगे कि भारत वनडे की नाकामी को भूल कर टेस्ट मैच में कामयाब हो. लेकिन यह दिल की आवाज है. दिमाग कहता है कि जब तक भारत के युवा क्रिकेटर वहां की हालत से अभ्यस्त होंगे, सीरीज खत्म हो चुका होगा. हाल के दिनों में विश्व क्रिकेट एक ग्लोबल विलेज बन गया है, पर्थ से लेकर जमैका के विकेट में वो जान नहीं रही और इंग्लैंड-दक्षिण अफ्रीका आज के दौर के क्रिककेटरों के लिए जूपिटर नही हैं. फिर भी चुनौतीपूर्ण सीरीज के लिए अभ्यास की जरूरत है और अभ्यास के लिए वक्त चाहिए. बोर्ड के अहंकार ने हमें तैयारी से बेदखल कर दिया है, जिससे विदेशी जमीन पर जीत का एक और मौका जाता दिख रहा है.

ऑस्ट्रेलिया में 2014 का वल्र्ड कप धोनी की यादगार कप्तानी सफर का शायद आखिरी पड़ाव होगा. भारत वल्र्ड कप चैंपियन है और धोनी खिताब की रक्षा के लिए उतरेंगे. 2014-15 में भारत का सामना ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में होना है और इसके मायने हैं. पहला, यह मौका होगा शिखर धवन के लिए साबित करने का कि वे मुश्किल विकेट पर भी सहवाग की जगह ले सकते हैं. पुजारा के लिए कि वे द्रविड़ की जगह लेने के लिए तैयार हैं और विराट-रोहित के लिए कि वे सचिन-लक्ष्मण का बेटन उठा सकते हैं. दूसरा, धोनी की कप्तानी में युवा ब्रिगेड के लिए यह साबित करने का मौका है कि वे विदेशी जमीन पर भी टेस्ट मैच जीत सकते हैं. तीसरा, विदेशी जमीन पर जीत के मौके का तभी फायदा उठाया जा सकता है, जब हम तैयारी करने में फेल न हों. यह तभी होगा, जब हम अपने अहंकार को खत्म करने के लिए तैयार हों.

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