।। राजीव चौबे ।।
प्रभात खबर, रांची
बोली एक अमोल है, जो कोई बोले जानि/ हिये तराजू तोलि के, तब मुख बाहर आनि. हमारे शरीर में मुंह एक ऐसा अंग है, जिसके जिम्मे दो अलग-अलग और महत्वपूर्ण काम हैं. एक खाने का और दूसरा बोलने का. वैसे तो लोग अपने काम की बदौलत इस दुनिया में अपनी पहचान बनाते हैं, लेकिन कई लोगों की पहचान या यूं कहें कि दुकान उनकी बोली के ही बूते चलती है. नेता और पंडित इनमें मुख्य हैं. इन दोनों में जो जितना और अच्छा बकता (माफ कीजिए, वक्ता) होगा, वह उतना ही श्रेष्ठ माना जाता है.
पंडितों पर फिर कभी बात करेंगे, अभी बात करते हैं कि नेताओं की. यहां गौरतलब यह है कि नेता का बोलना इतना जरूरी है कि उसे इसी की बदौलत प्रधानमंत्री की कुरसी का उम्मीदवार भी मान लिया जाता है.
इस बात से इतर कि वह गलत बोले या सही, सच बोले या झूठ. बस, उसकी बोली में ‘मास अपील’ होनी चाहिए. तभी तो जुबान के धनी और एक राज्य के मुख्यमंत्री आज न सिर्फ प्रधानमंत्री को सीधी टक्कर दे रहे हैं, बल्कि उन पर बीस साबित हो रहे हैं. और तो और, इसे प्रधानमंत्री स्वीकार भी करते हैं.
यह बात अलग है कि इन मुख्यमंत्री महोदय की बोली कई दफे इतिहास-भूगोल के प्रति उनकी अज्ञानता को जाहिर कर चुकी है. जबकि हमारे प्रधानमंत्री रिजर्व बैंक के गर्वनर रह चुके हैं, ऐसे में उनके ज्ञान पर सवाल उठाने का कोई तुक नहीं बनता. लेकिन हमारे देश की जनता तो हर जगह अपना एंटरटेनमेंट ढूंढ़ती है (यहां तक कि दुष्कर्म की खबरों में भी!). वह तो नेता के भाषण में तेवर और तुक्कों की मुरीद होती है, इस बात से बेखबर कि उसमें तथ्य कितना है.
शायद इसीलिए हमारे प्रधानमंत्री महोदय ने उपरोक्त मुख्यमंत्री महोदय से वाक्युद्ध में खुद को पिछड़ता देख कर अपनी बहुचर्चित चुप्पी तोड़ने की ठान ली है. पिछले दिनों जब पड़ोसी देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने एक विदेशी अखबार को दिये एक इंटरव्यू में कहा कि कश्मीर के मुद्दे पर भारत से पाकिस्तान की चौथी लड़ाई छिड़ सकती है, इस पर जब हमारे देश के ‘साइलेंट’ प्रधानमंत्री से प्रतिक्रया मांगी गयी तो उन्होंने अपनी छवि के उलट ऐसा ‘वायलेंट’ बयान दिया कि उसे पढ़-सुन-देख कर हर भारतवासी का दिल गदगद हो गया.
उन्होंने कहा कि उनके जीते-जी पाकिस्तान भारत को कभी हरा नहीं पायेगा. अब जाहिर है कि हमारे प्रधानमंत्री महोदय बॉर्डर फिल्म के नायक सनी देओल की तरह अपने कंधे पर मोर्टार रख कर दुश्मनों को उड़ाने तो जायेंगे नहीं, न ही उनकी उम्र उन्हें इस बात की इजाजत देगी. लेकिन एक बात तय है कि अगर उन्होंने अपने लगातार दो कार्यकालों में देश के भीतरी और बाहरी मामलों में इसी तेवर के साथ बयान दिये होते तो शायद उनके सुवचन देश के लोगों में नयी ऊर्जा का संचार करते और इसका फायदा शायद बेहतर शासन और प्रबंधन में भी मिलता. तो जनाब बोलिए.. बिंदास बोलिए..