गंभीर अतिशयोक्ति होगी कि अब भी क्रिकेट ‘जेंटलमैंस गेम’ बना हुआ है. लेकिन, जब खेल में कोई भद्र व्यक्ति आता है, तो यह उत्सव बनता है. भाग्य कोई भी भूमिका दे सकता है, पर यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह आदर्श बन सके.
नये साल की शुरुआत का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता है कि एक ऐसे व्यक्ति का अभिनंदन किया जाये, जो अपना गुणगान किये बगैर ईमानदार हो सकता है. तो आइए, हाशिम अमला की शान में बैट उठाया जाये, जो अब दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान हैं, जिन्होंने इस सपनीले ओहदे से तब इस्तीफा दिया, जब विदाई की कोई मांग भी नहीं हो रही थी. अमला ने पद छोड़ने का फैसला इसलिए किया कि बल्लेबाज के रूप में टीम को उनका योगदान कप्तान के तौर पर उनकी जिम्मेवारियों के कारण प्रभावित हो रहा था.
अधिकतर क्रिकेट कप्तान बल्लेबाज हैं. ऐसा इस कारण से नहीं है कि बल्लेबाजी इस खेल में कोई ऊंची जाति है. गेंदबाजी ज्यादा मेहनत का काम है, जिसमें तकलीफ अधिक और ग्लैमर कम है. कई ऐसे महान कप्तान हुए हैं, जो शानदार गेंदबाज थे. इस संदर्भ में ऑस्ट्रेलिया के रिची बेनो और हमारे अपने कपिल देव ध्यान में आते हैं. इयान बॉथम या इमरान खान जैसे ऑल-राउंडर भिन्न श्रेणी के हैं. लेकिन, चयनकर्ताओं द्वारा आम तौर पर बल्लेबाजों को ही पसंद करने का एक भला-सा कारण है. कप्तान का सही इम्तहान पांच-दिवसीय टेस्ट मैच में ही होता है. बीस ओवर के खेल में क्रिकेट का कप्तान किसी फुटबॉल टीम के कप्तान की ही तरह होता है, जो प्रासंगिक तो होता है, पर जरूरी नहीं. एक-दिवसीय में हम कह सकते हैं कि कप्तान को ऑल-राउंडर होना चाहिए.
अपने बेहतरीन रूप में क्रिकेट एक धीमा खेल है, और इसमें दांव-पेंच के बदलाव के साथ रणनीतिक निर्णय के लिए अवसर होते हैं. टेस्ट कप्तान को मैदान पर लगातार खेल की प्रगति का विश्लेषण करना होता है. उनके खेल को देख कर कहा जा सकता है कि हाशिम अमला विचारवान कप्तान होने के साथ एक समझदार व्यक्ति भी हैं. उन्होंने हमेशा ईमानदारी दिखायी है. लेकिन, उनकी उपस्थिति की स्मृति का निर्धारण हमेशा इंग्लैंड के विरुद्ध एक कठिन सीरीज के बीच में कप्तानी से विदाई लेने की परिघटना से किया जायेगा.
उनकी कप्तानी में दक्षिण अफ्रीका का खेल खराब रहा है. पिच से जुड़े विवादों से इस तथ्य को नहीं छुपाया जा सकता है कि भारत के साथ हालिया सीरीज में अफ्रीकियों को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. किसी भी स्थिति में पिच का बहाना एक अजीब तर्क है. अगर पिच खराब है, तो वह दोनों पक्षों के लिए खराब है. हरी घास का मैदान तेज गेंदबाजों को मदद करता है. ऐसे में कमेंटेटरों को बेचैनी क्यों होती है कि सूखी पिच से स्पिनरों को लाभ होता है? इस बात को रेखांकित करना जरूरी है कि अमला भारत में सीरीज हारने के बाद ऐसे बेतुके बहानों के चक्कर में नहीं पड़े. उनकी मुश्किल उनके रन नहीं बनाने के कारण भी बढ़ गयी थी.
यही हाल तब भी जारी रहा, जब दक्षिण अफ्रीका के साथ मौजूदा सीरीज में इंग्लैंड ने पहला टेस्ट मैच जीत लिया और अपने विरोधी को खेल के हर विभाग में पीछे छोड़ दिया था, और फिर दूसरे टेस्ट की पहली पारी में बड़ा स्कोर खड़ा कर दिया. जब अमला बल्लेबाजी करने आये, तब तक एक लिहाज से मैच का फैसला हो चुका था. उनके दोहरे शतक ने न सिर्फ बल्लेबाज के रूप में उनके महत्व को बहाल किया, बल्कि एक कप्तान के रूप में उनकी साख की भी रक्षा की. हमें ऐसा नहीं समझना चाहिए कि टीम की बल्लेबाजी के वक्त कप्तान के पास करने के लिए कुछ नहीं होता. वह पारी में हर खिलाड़ी की भूमिका को परिभाषित करता है और अपने संकेतों के जरिये गड़ेरिये का काम करता है.
हाशिम अमला ने ठीक उसी क्षण इस्तीफा दिया, जब उनके संदेह दूर हो गये. उन्होंने तब पद छोड़ा, जब वे खिलाड़ी और कप्तान के रूप में वापस ऊंचाई पर आ गये थे. अगर धीरे दौड़ने के लिए चयनकर्ताओं ने कप्तानों को दंडित किया, तो पद से हटने के दो या तीन सीजन के बाद उनका बच पाना संभव नहीं है. अमला ने अपने मन से यह निर्णय लिया, जो उनकी नजर में टीम के लिए फायदेमंद है. हमारे पास ऐसे उदाहरण कम हैं. कप्तान अपने अधिकार को छोड़ने के लिए आसानी से तैयार नहीं होते हैं, क्योंकि इस अधिकार के प्रत्यक्ष-परोक्ष वित्तीय लाभ भी होते हैं.
यह कहना गंभीर अतिशयोक्ति होगी कि अब भी क्रिकेट ‘जेंटलमैंस गेम’ बना हुआ है. क्रिकेट में अन्य किसी खेल की ही तरह भद्र और दुष्ट लोग हैं. इसमें न तो कोई अच्छाई है, न ही कोई बुराई, यह अवश्यंभावी है. मौजूदा गणतांत्रिक दौर में मूल्यों का होना या न होना वर्ग-विशेष पर नहीं निर्भर करता है, और उन्हीं लोगों को धन मिलता है, जिनमें उत्पादों को बेचने की क्षमता होती है. लेकिन, जब खेल में कोई भद्र व्यक्ति आता है, तो यह उत्सव मनाने का कारण है. भाग्य कोई भी भूमिका दे सकता है, पर यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह आदर्श बन सके.
एमजे अकबर
राज्यसभा सांसद, भाजपा
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