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शराबबंदी के लिए चले एक आंदोलन

असगर वजाहत वरिष्ठ साहित्यकार माननीय सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से कहा है कि वे जनता के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर शराबबंदी लागू करें. यह प्रसन्नता की बात है कि सुप्रीम कोर्ट जनता के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है.हमारे देश में 10 हजार लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर है. अस्पतालों की बहुत कमी है. […]

असगर वजाहत

वरिष्ठ साहित्यकार

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से कहा है कि वे जनता के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर शराबबंदी लागू करें. यह प्रसन्नता की बात है कि सुप्रीम कोर्ट जनता के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है.हमारे देश में 10 हजार लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर है. अस्पतालों की बहुत कमी है. दवाएं लगातार महंगी हो रही हैं. चिकित्सा सुविधाएं पर्याप्त नहीं है. फिर भी, केंद्र ने स्वास्थ्य बजट में कटौती कर दी है.

स्वास्थ्य का सीधा संबंध आदमी के खाने-पीने से है. यदि लोगों के पास रोजगार नहीं होगा, उचित आय नहीं होगी, महंगाई होगी, तो असर भोजन और स्वास्थ्य पर पड़ेगा. क्या जनता के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई को अनदेखा किया जा सकता है? निश्चित रूप से नहीं. इन समस्याओं का समाधान कठिन है, जबकि इसकी जिम्मेदारी शराब पर डाल कर शराबबंदी लागू करना सरल है.

पिछले साल यह खबर छपी थी कि दिल्ली मेट्रो में शराब पीकर चलनेवाले यात्रियों को रोक दिया जायेगा. इस पर मैंने एक टिप्पणी लिखी थी, राजभोज के बाद अगर मेहमान पीएम मेट्रो से जाना चाहेंगे, तो शायद उन्हें नहीं जाने दिया जायेगा, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी में विदेशी प्रतिनिधिमंडलों और हाइ पावर डेलिगेशन की दावत करते हुए शराब परोसी और पी जाती है. खबर यह भी थी कि पांच सितारा होटलों और विदेशी पर्यटकों के लिए शराबबंदी लागू नहीं होगी. इसका तो यही अर्थ निकलता है कि हमारा देश पांच सितारा होटलों में जानेवालों और विदेशियों के स्वास्थ्य की चिंता नहीं करता है.

शराबबंदी लागू करना सरल है. संबंधित मंत्रियों और अधिकारियों की बैठक में प्रस्ताव पास हो जाता है, उस पर कुछ चिट्ठी-पत्री हो जाती है और समाचार छप जाता है.

लेकिन, वास्तविक समाधान मुश्किल काम है, जिसे करने से सब कतराते हैं. आधी से अधिक दुनिया में शराब पी जाती है. इसका मतलब है कि आधी दुनिया में सबका स्वास्थ्य बहुत खराब होगा. लेकिन, आंकड़े इसके विपरीत हैं. यूरोप और अमेरिका के लोगों का स्वास्थ्य भारतीयों के स्वास्थ्य से बहुत अच्छा बताया जाता है. इसलिए शराब का स्वास्थ्य से कितना संबंध है, यह विचारणीय प्रश्न है.

मैं शराबबंदी के पक्ष में हूं, लेकिन मानता हूं कि सिर्फ कानून बना कर शराब पीने को नहीं रोका जा सकता.

अपनी बात के प्रमाण में मैं अमेरिका में तंबाकू पीने के विरोध में चले आंदोलन को उदाहरण के रूप में पेश करना चाहता हूं. अमेरिका में बड़े स्तर पर यह आंदोलन चलाया गया था कि लोग सिगरेट न पीएं. ध्यान दें, कि सिगरेट पर बैन नहीं लगाया गया था. आंदोलन का प्रभाव यह पड़ा कि आज अमेरिका में सिगरेट पीनेवालों की संख्या काफी कम हो गयी है.

मुझे लगता है कि शराबबंदी के लिए जनमत बनाना, आंदोलन चलाना कठिन काम है, इसलिए सरकारें केवल बंदी लागू करने को प्राथमिकता देती हैं. जिन प्रदेशों में शराबबंदी लागू की गयी है, उनके परिणामों से पता चलता है कि शराबबंदी लोगों को शराब पीने से रोकने का कोई सार्थक तरीका नहीं है. इससे कुछ समय के लिए लोकप्रियता प्राप्त की जा सकती है और वास्तविक समाधान से लोगों का ध्यान हटाया जा सकता है.

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