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हिंसा-मुक्त दुनिया बनाएं हम

निवेदिता स्वतंत्र लेखिका अब जब तुम विदा ले रहे हो, तो तुम्हें किस तरह याद करूं मेरे बीते हुए साल! मैं तुम्हें एक रहमदिल और ख्ूबसूरत समय की तरह याद रखना चाहती हूं. याद रखना चाहती हूं धान के उगते हुए पौधे और कपास उगाते किसानों की तरह. सारसों के हुजूम, कंवल के झंडु, चांदी […]

निवेदिता
स्वतंत्र लेखिका
अब जब तुम विदा ले रहे हो, तो तुम्हें किस तरह याद करूं मेरे बीते हुए साल! मैं तुम्हें एक रहमदिल और ख्ूबसूरत समय की तरह याद रखना चाहती हूं. याद रखना चाहती हूं धान के उगते हुए पौधे और कपास उगाते किसानों की तरह. सारसों के हुजूम, कंवल के झंडु, चांदी के बादल, उड़ते हुए बगुले और शाम के आसमान पर सुलगते हुए सितारों की तरह.
पर नहीं, मेरा दिल लहूलुहान है. अनगिनत जख्म ताजा हैं. किसका हिसाब करूं किसका नहीं! वे औरतें जो मार दी गयीं, जला दी गयीं, जिन बच्च्यिों को ठंडी कब्र में खून से भीगे दफना दिया गया.
जिनकी त्वचा तेजाब से जला दी गयीं. जिन्होंने अपनी आंखें खो दीं. जो अपने हाथों में मरे-अधमरे बच्चे लिये घर की तलाश में भटक रहीं हैं. तुम्हीं कहो, अक्षम्य बर्बरता और असमानताओं के बीच तुमने किस तरह गुजारा? फिर भी मेरे दोस्त, घोर दुखों के बीच खुशी के अंकुर तलाशे हमने. लजाते सौंदर्य का उसकी खोह तक पीछा किया. माना कि हर अंधेरे के बाद एक उजला दिन हमारे हिस्से आयेगा, पर अंधेरा इतना गहरा है कि हम भूल गये हैं कि औरतें इस देश की आधी आबादी हैं. आधा आसमान उसका है, आधी जमीन उसकी है.
तुम्हें पता है, बीते एक साल में साढ़े तीन लाख औरतें किसी-न-किसी हिंसा की शिकार हुईं. हर दो मिनट पर एक महिला दबोच ली गयी, मार दी गयी या जला दी गयी. तुम मत कहना कि ये तो महज आंकड़े हैं. नहीं, ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि विचार हैं. पृतिसत्ता के विचार. हमारे समाज में औरत वस्तु है, भोगने के लिए है. औरत के कंधे पर इज्जत का पूरा दारोमदार है.
औरतों के प्रति ये खतरनाक विचार बैठकों में, राजनीति में, बदबूदार बिस्तरों में जन्म लेते हैं. औरतें यहां पुरुषों के अधीन हैं. जब निर्भया जैसी विभत्स घटना होती है, तो देश का गौरव जाग उठता है. मैं कहना चाहती हूं उन औरतों से, जिनकी अपनी कोई जमीन नहीं, जिनकी कोई जाति और धर्म नहीं, जिनका कोई ध्वज नहीं, जिन्हें धर्म-जाति के नाम पर, कबीले के नाम पर, या परिवार की इज्जत के नाम पर मार दिया गया. यही समय है, उठो और कहो कि अब जुल्म की रात खत्म होगी. तुम हो तो मूल्य बचे रहेंगे. तुम हो तो दुनिया के होने के मायने बने रहेंगे.
इस साल कितनी लड़कियों ने न्याय के अभाव में या तो दम तोड़ दिया, या हथियार डाल दिया. लड़नेवाली ये लड़कियां कितनी अकेली पड़ गयी हैं.
कानून की पकड़ ढीली है. उन तमाम यौन अपराधियों के लिए कानून को और पुख्ता व धारदार होना होगा. मामला चाहे किसी न्यायधीश से जुड़ा हो या किसी राजनीतिक नेता से. ये सारे आचरण इस बात के सबूत हैं कि हम स्त्री को उसकी यौनिकता से बाहर नहीं देखते. जस्टिस गांगूली ने अपने इंटर्न के साथ जो कुछ किया या एक जिम्मेवार नेता ने जिस तरह एक महिला की निजता में दखल दिया, उसकी जासूसी करायी या बिहार में दलित महिलाओं की हत्या हुई, क्या ये घटनाएं नहीं कहती हैं कि हमारे समाज और कानून व्यवस्था को एक नये सिरे से परिभाषित किये जाने की जरूरत है?
निर्भया मामले के बाद वर्मा कमिटी की सिफारिशों में एक हद तक महिलाओं पर हो रही हिंसा को नये सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की गयी, पर सरकार ने उसे भी पूरी तरह नहीं अपनाया है.
यह समय की मांग है कि कानून अपने पुराने खोल से बाहर निकले. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो मुक्त, निष्पक्ष व निर्भीक न्यायपालिका की परिकल्पना बेमानी है. महिलाओं के लिए बुरे दिन आनेवाले हैं. बुरे वक्त से लड़ रही महिलाओं के लिए अब काम के दरवाजे बंद होनेवाले हैं. दुनिया के आंकड़े बताते हैं कि कामकाजी महिलाओं के लिए काम के अवसर लगातार कम हो रहे हैं. हमारे देश की कामकाजी महिलाओं की तादाद में गिरावट जारी है.
नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो के मुताबिक, देश में हर 20 मिनट पर एक महिला के साथ बलात्कार होता है. सिर्फ दिल्ली के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल में कुल 66 प्रतिशत महिलाएं दो से पांच बार यौन हिंसा की शिकार हुई हैं. मैं जिस दुनिया का सोग मना रही हूं, वह पहले से ही दागदार और बीमार है, फिर भी मुझे प्यार है उससे.
मैं चाहती हूं, हम एक ऐसी दुनिया बनाएं, जहां हिंसा के लिए जगह नहीं हो. इसके लिए सालों-साल मेहनत और नीतिगत स्तर पर महत्वपूर्ण फैसले लेने की जरूरत है.
जनीतिक हस्तक्षेप की जरूरत है. यह लंबी लड़ाई है. औरतें लड़ रही हैं, पर अभी उन्हें मीलों चलना है. हम सब यह कामना कर सकते हैं कि आनेवाला साल औरतों की जिंदगी को बेहतर करेगा. हवा में तेजाब नहीं, बल्कि गुलाबों की तेज महक होगी. दूर पहाड़ों पर आबशार गिरेंगे, जमीन फूलों से भर जायेगी. रात के अंधेरे में जुगनू चमकेंगे, तब औरतों की दुनिया उजालों से भर जायेगी.

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