।। विजय झा ।।
(प्रभात खबर, पटना)
इन दिनों नेता लोग भूगोल की पढ़ाई में जुटे हैं. ऐसा लग रहा है कि वह दिन दूर नहीं, जब देश के सभी नेताओं के लिए भूगोल पढ़ना अनिवार्य कर दिया जायेगा. वैसे भी राजनीतिशास्त्र में रखा ही क्या है कि नेता लोग उसे पढ़ें. जिन नेताओं को राजनीतिशास्त्र का थोड़ा बहुत ज्ञान है भी, वे बस किसी तरह नेतागिरी कर रहे हैं. इससे न तो वे अपने परिवार का भला कर पा रहे हैं और न ही देश का. यहां तक कि इन नेताओं के आने से टीवी चैनलों की टीआरपी भी नहीं बढ़ रही है. एक समय अन्ना आंदोलन के समय ईमानदार लोगों की किल्लत भी इसी तरह हो गयी थी.
उस समय ईमानदार न होने के बावजूद जो भ्रष्टाचार के खिलाफ अच्छा भाषण दे सकते थे, उन्हें हर टीवी चैनल बुलाता था. अपनी वाकपटुता से आज वे राजनीति के अर्श पर हैं. इसी तरह, इन दिनों उन नेताओं और विशेषज्ञों की बल्ले-बल्ले है, जिन्हें भूगोल का थोड़ा बहुत भी ज्ञान है. चूंकि भूगोल नेताओं का कभी पसंदीदा विषय नहीं रहा था, इस कारण कुछ प्रधानमंत्री मैटेरियल वाले नेता ही भूगोल के बारे में जानते हैं और वे भूगोल को अपने हिसाब से बदलने की क्षमता भी रखते हैं. लोकसभा चुनाव नजदीक है और जिस तरह के चुनावी सर्वे आ रहे हैं, उससे सभी पार्टियों के नेताओं को प्रधानमंत्री बनने का सपना आ रहा है.
इस कारण सभी नेता न केवल भूगोल पढ़ रहे हैं, बल्कि भूगोल पढ़ कर टीवी पर एक्सपर्ट कमेंट भी दे रहे हैं, ताकि जनता को ये न लगे कि उनमें प्रधानमंत्री बनने की काबिलीयत नहीं है. जिसे भूगोल का जितना अधिक ज्ञान है, वे उसी तरह उसकी व्याख्या कर रहे हैं. वैसे भी आदर्श नेता वही होता है, जो भूगोल बदलने की क्षमता रखता है. पुराने जमाने में उन्हें बेहतर नेता माना जाता था, जो इतिहास बदलने की क्षमता रखते थे. बेचारा भूगोल सोशल साइंस का फेवरेट सब्जेक्ट होने के बावजूद दलित की तरह उपेक्षित ही बना रहा. वे सोशल साइंस का फेवरेट हिस्सेदार होने के बावजूद हमेशा इतिहास और राजनीतिशास्त्र से पिछड़ जाते थे. लेकिन देर ही सही, भूगोल ने अपनी एंट्री रितिक रोशन की कहो न प्यार है फिल्म की तरह जबरदस्त की है.
कहो न प्यार है के बाद रितिक एकाएक तीनों खान का विकल्प बन गये थे और उनके बारे में बहुत सारे फिल्मी विशेषज्ञ उभर आये थे. एकाएक सभी टीवी चैनलों के साथ ही नेताओं और इससे जुड़े लोगों के लिए हॉट विषय बन गया है, भूगोल. खुद को इतनी महत्ता पा कर वह फूला नहीं समा रहा है. खुशी में वह अपना स्थान ही भूल गया है, जिसका लाभ आज के नेता लोग उठा रहे हैं. भूगोल को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि उसका स्थान कहां है. वे दल-बदलू की तरह अपनी सीट लगातार बदल रहे हैं और नेता लोग आपस में लड़ रहे हैं कि उन्होंने भूगोल बदला है. आप ही बताइए कि जब उन्हें पढ़ने तक का टाइम नहीं है, तो वह भूगोल कैसे बदल सकता है?