जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की भारत-यात्रा कई अर्थों में महत्वपूर्ण है. पिछले एक महीने में दोनों देशों के प्रधानमंत्री चार बार मिल चुके हैं. भारत और जापान के बीच घनिष्ठता का वर्तमान स्तर विगत डेढ़ दशकों के द्विपक्षीय प्रयासों का परिणाम है, जो पूर्व प्रधानमंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी और योशिरो मोरी के जापान-भारत वैश्विक भागीदारी समझौते से प्रारंभ होती है.
वर्ष 2007 में प्रधानमंत्री अबे ने दोनों देशों की निकटता को एशिया के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक बताया था. चीन, उत्तरी और दक्षिणी कोरिया तथा रूस के साथ बढ़ती असहजता के साथ अमेरिका के क्षेत्रीय विवादों से पल्ला झाड़ लेने के बाद जापान अलग-थलग पड़ने लगा था. ऐसे में उसे भारत जैसे प्रभावशाली सहयोगी की बड़ी आवश्यकता थी. चीन के बढ़ते असर से चिंतित भारत के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण अवसर था. वर्ष 2011 में दोनों देशों के बीच हुआ पूर्ण आर्थिक सहयोग समझौता एक उल्लेखनीय कदम था. पिछले वर्ष के गणतंत्र दिवस समारोह में अबे मुख्य अतिथि थे.
प्रधानमंत्री मोदी भी जापान का दौरा कर चुके हैं. राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों की यात्राओं के कई आयाम होते हैं. इस लिहाज से अबे के दौरे में भी रणनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर चर्चा होगी, परंतु इनमें सबसे प्रमुख पक्ष आर्थिक सहयोग का ही होगा. अबे जापान की मंदी से जूझ रहे हैं और अब तक उनकी नीतियों के बड़े सकारात्मक नतीजे सामने नहीं आये हैं. उन्हें अपने उत्पादों और पूंजी के लिए भारत के बाजार की जरूरत है तथा भारत का मौजूदा आर्थिक माहौल भी उनके अनुरूप है.
भारत रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक है. हाल में भारत ने रक्षा क्षेत्र में निर्माण में विदेशी भागीदारी को हरी झंडी दी है. इन दोनों स्तरों पर जापान उल्लेखनीय योगदान दे सकता है. इस यात्रा में परमाणु समझौते पर सहमति की उम्मीद भले कम है, पर इस दिशा में कुछ और प्रगति हो सकती है. रेल, सड़क और पर्यावरण में व्यापक जापानी निवेश की संभावना है. चीन के मद्देनजर एशिया में शक्ति-संतुलन की जरूरत दोनों देशों को और करीब ला सकती है.
विभिन्न मुद्दों पर सहमति बनाने में मोदी और अबे के सकारात्मक व्यक्तिगत समीकरण भी खासे महत्वपूर्ण हैं. हालिया वर्षों में जापान और भारत के बीच तेजी से बढ़ी नजदीकियों तथा पिछले दिनों दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाकातों का सिलसिला इस बात का भरोसा देते हैं कि अबे की यह यात्रा दोनों पक्षों के लिए अब तक की सबसे सफल यात्रा हो सकती है.