इस एलायंस में कर्क और मकर रेखाओं के इर्द-गिर्द बसे देश एक प्लेटफॉर्म पर आकर स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और उपभोग बढ़ाने के लिए मिल कर काम करेंगे. भारत पिछले कई महीनों से वैश्विक मंचों पर सौर ऊर्जा पर जोर देता आ रहा है. प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र के दो संबोधनों में जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों से निपटने के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के दोहन के महत्व को रेखांकित कर चुके हैं. अक्तूबर में दिल्ली में आयोजित भारत-अफ्रीका सम्मेलन में भी उन्होंने अफ्रीकी देशों को इस प्रयास में भागीदार बनने का आमंत्रण दिया था. इस पहल में कुछ अफ्रीकी देशों के साथ चीन, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड पहले से ही शामिल हैं. कर्क और मकर रेखाओं के पास बसे देशों में सूर्य की पर्याप्त रोशनी उपलब्ध है. कुछ देशों में साल के 300 दिन तेज धूप मिलती है. ऐसे अधिकतर देशों में ऊर्जा का संकट भी है. इस एलायंस से बहुत उम्मीदें भी हैं, क्योंकि इसका मुख्य ध्यान ऊर्जा-उत्पादन के साथ उसके समुचित वितरण और आर्थिक विकास में उसकी भूमिका पर भी है. भारत ने 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा से अपनी 40 फीसदी जरूरतों को पूरा करने तथा 2022 तक 100 गीगावाट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा है.
आज जब 180 से अधिक देश जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण क्षरण और प्राकृतिक आपदाओं के समाधान के लिए पेरिस में जमा हैं, तो उन्हें 2009 के कोपेनहेगेन सम्मेलन की असफलता के दोहराये जाने का भय भी सता रहा है. इस कारण से संयुक्त राष्ट्र एक वैश्विक समझौते को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न देशों द्वारा स्वायत्त रूप से किये जा रहे प्रयासों को भी समान रूप से महत्व दे रहा है.
सोलर एलायंस के संस्थापक सदस्य के तौर पर संयुक्त राष्ट्र के भी शामिल होने की संभावना है. सम्मेलन को प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक कौशल के लिए एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है. सोलर एलायंस का बनना भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है. सौर ऊर्जा के क्षेत्र में ऐसी कोशिश पहली बार हो रही है, इसलिए चुनौतियां भी गंभीर होंगी. उम्मीद है कि मानव जाति के भविष्य की सुरक्षा के लिए सभी देश स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ेंगे. बहरहाल, पेरिस सम्मेलन की यह एक शुभ शुरुआत तो है ही.