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मोहब्बत का संदेश देते रूमी

सुर्ख गुलाब की तेज खुशबू, नाक से चढ़ कर दिमाग तक जा रही थी. तबले पर पड़ती तेज थाप और कव्वाल की तीखी आवाज एक माहौल बना रही थी, लेकिन बावजूद इसके एक अजीब सा सुकून था उस जगह पर. मैं बात कर रही हूं दिल्ली में महरौली में स्थित बख्तियार काकी की मजार की. […]

सुर्ख गुलाब की तेज खुशबू, नाक से चढ़ कर दिमाग तक जा रही थी. तबले पर पड़ती तेज थाप और कव्वाल की तीखी आवाज एक माहौल बना रही थी, लेकिन बावजूद इसके एक अजीब सा सुकून था उस जगह पर. मैं बात कर रही हूं दिल्ली में महरौली में स्थित बख्तियार काकी की मजार की. दिल्ली में फूल वालों की सैर चल रही थी.

मजार पर बहुत ही सूफियाना सा माहौल था. आनेवाले लोग हर मजहब के लग रहे थे. किसी के हाथ में फूल थे, तो किसी के हाथ में चादर, लेकिन सबकी आंखों में एक-सा ही नूर दिख रहा था. देश की गंगा-जमुनी तहजीब का. इस उत्सव को अंजुमन-सैर-ए-गुल फरोशां सन् 1961 से लगातार आयोजित करती आ रही है. जब भी मैं बख्तियार काकी की मजार या फिर निजामुद्दीन की दरगाह पर जाती हूं, तो बाहर के माहौल को अगर छोड़ दिया जाये, तो मजार का सूफियाना माहौल सच में बहुत ही खूबसूरत लगता है. क्या भारत और क्या दुनिया अगर इन सूफी, दरवेशों के बारे में सोचा जाये कि आखिर ये लोग दुनिया को क्या दे गये, तो जवाब होगा बहुत कुछ.

दुनिया की बात बाद में करेंगे. अगर भारत में ही देखा जाये, तो ऐसा लगता है कि सूफी जहां से भी गुजरे लोग इनके मुरीद हो गये. फिर चाहे वे मुइनुद्दीन चिश्ती हों या फिर कोई और. सूफी के नाम पर भले ही लोगों की आंखों के सामने सफेद लिबास और न समझ में आनेवाले फलसफे हों, पर खानकाहों से निकला सूफी नाम का नूर अमन और मोहब्बत की बात करता है. जिक्र जब सूफियों का हो, तो मैं भला रूमी को कैसे भूल सकती हूं. हालांकि, मैं इस बात का दावा कतई नहीं करती कि मैं रूमियन फिलासॉफी के बारे में जानती हूं. रूमी को पढ़ना उसमें छुपे रहस्य को सुलझाना कम से कम मेरे बस की बात नहीं, लेकिन हां जितना पढ़ा और समझा बहुत ही शानदार पाया.

डर है कि अगर मैंने रूमी को कहीं पूरा समझ लिया, तो मैं भी खानकाह की राह ना पकड़ लूं. वैसे आज की तारीख में अमेरिका समेत तमाम तरक्कीपसंद देशों में रूमी के दीवानों की तादाद बड़ी ही तेजी से बढ़ रही है. आखिर क्या छुपा है रूमी के विचारों में, जिसकी यह दुनिया इस कदर दीवानी हुई जा रही है.

यहां एक बात और बेहद काबिल-ए-गौर है. आज जिस सीरिया में इसलाम के रखवाले इसलाम की एक नयी परिभाषा दुनिया को समझाने की कोशिश कर रहे हैं, कभी उसी सीरिया में रूमी की रूबाइयां इंसान को इंसान से मोहब्बत करने का संदेश दे रही थीं. खुदा तो तलाशनेवालों को रूमी खुद को तलाशने का संदेश दे रहे थे. शैतान से नफरत करनेवालों को कह रहे थे कि मैं खुदा से इतना प्यार करता हूं कि वह मुझे किसी से नफरत करने लायक नहीं छोड़ता. क्यों भूला दी गयी हैं रूमी की इन खूबसूरत बातों को? सुना है रूमी को बांसुरी बहुत पसंद थी. दिली ख्वाहिश है कि फिर कोई रूमी आये और अपनी बांसुरी की तान पर इसलाम के नाम पर खून बहानेवालों को मदहोश कर बियाबांस में छोड़ आये.

नाजमा खान

टीवी पत्रकार

courtesy : khabar.ibnlive.com

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