पुलिस फायरिंग की ताजा घटनाओं में चार मधेसियों की मौत और दर्जनों लोगों का घायल होना बताता है कि नेपाल सरकार आंदोलनकारियों की मांगों पर सकारात्मक रुख अपनाने और दूरदर्शितापूर्ण फैसला लेने की बजाय दमन का रास्ता अख्तियार कर रही है. मधेसी आंदोलन के दौरान नेपाल में भारतीय ट्रकों को रोके जाने से देश में पैदा हुए ऊर्जा संकट का समाधान आंदोलन को समाप्त करने में तलाशने की बजाय, नेपाल का शासक वर्ग इसके बहाने नेपाली लोगों के मन में भारत की नकारात्मक छवि भरने की कोशिशों में जुटा है. इसी कड़ी में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने रविवार को टीवी पर अपने पहले संबोधन में भी हालात बिगड़ने के लिए भारत को जिम्मेवार ठहराया है.
ऐसे आरोपों से भारत के लगातार इनकार के बावजूद नेपाल सरकार जिस तरह भारत से तर्कसंगत बातचीत में दिलचस्पी नहीं दिखा रही और भौगोलिक सीमाओं की हकीकत को नजरअंदाज कर चीन के साथ नये समझौते कर रही है, वह स्पष्ट संकेत करता है कि नेपाल सरकार की मंशा क्या है. अपने तराई इलाके को जलता छोड़ कर कूटनीतिक खेल खेलने का यह ख्याल नेपाल के नेता जितनी जल्दी अपने दिमाग से निकाल दें, नेपाल के विकास के लिए उतना ही अच्छा होगा. भारत की नीति पड़ोसी देश के मामलों में हस्तक्षेप की नहीं रही है, लेकिन पड़ोस में आग की तपिश देर-सबेर इस पार भी पहुंचेगी, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता.
जाहिर है, यह भारतीय राजनय की कूटनीतिक दक्षता के लिए परीक्षा की कठिन घड़ी है, जिसमें पास होना देशहित में जरूरी है. जिस तरह से नेपाल की ओर से भारत पर आरोप मढ़ कर उसकी छवि बिगाड़ने का खेल लगातार चल रहा है, उसका प्रत्युत्तर भी उसी तत्परता से देना होगा. अगर नेपाल की सत्ता के मन में भारत के साथ सहकार को लेकर किसी तरह का संशय है, तो उसके तुरंत निवारण के लिए कारगर पहल की जानी चाहिए. लेकिन, ऐसा करते हुए यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि भारत की कोई भी पहल नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न हो और न ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कोई संकेत जाये. यह दोनों देशों के हित में होगा कि वे अपने पुराने और प्रगाढ़ रिश्तों की पृष्ठभूमि में आपसी संबंधों को फिर से वही गहराई देने का प्रयास करें.