देश में औद्योगीकरण और नगरीकरण के साथ परिवहन के निजी साधनों की संख्या में भी तीव्रतर वृद्धि हुई है. इसके परिणामस्वरूप सिर्फ बड़े ही नहीं, बल्कि छोटे शहरों में भी थोड़ी सी ट्रैफिक बढ़ती है, तो पूरा शहर रेंगने पर मजबूर हो जाता है. इस नारकीय स्थिति में जाम में फंसा व्यक्ति ध्वनि और वायु प्रदूषण की चपेट में आकर बेवजह अपने स्वास्थ्य का नुकसान कर बैठता है. काम पर जानेवालों के लिए अब यह रोज की बात हो गयी है.
देश में आर्थिक उदारीकरण के बाद दो और चार पहिया वाहनों की संख्या में द्रुत गति से वृद्धि हुई है. इस समयांतराल में वायु और ध्वनि प्रदूषण ने मानव-स्वास्थ्य का खूब नुकसान किया है. बावजूद इसके हर व्यक्ति अब यथाशक्ति निजी वाहन रखने को आमादा है. सार्वजनिक बसों व ऑटो पर बैठ हिचकोले खाकर अपने गंतव्य पहुंचना आखिर कौन पसंद करता है? नागरिकों की इस महात्वाकांक्षा के कारण बेचारे पर्यावरण की बलि चढ़ रही है.
दिनोंदिन प्रदूषित व अशुद्ध होते वातावरण में चंद मिनटों की चैन की सांस लेना दूभर होता जा रहा है. सुबह पौ फटने के साथ ही सड़क पर वाहनों के फर्राटा मार कर धूल उड़ाने का जो सिलसिला शुरू होता है, वह देर रात तक चलता रहता है. किसे पता कि जाम के झाम के चक्कर में फंसा कोई रोगी अंतिम सांसें ले रहा होता है, तो कोई जरूरी काम के लिए घर से निकला व्यक्ति बस अपनी किस्मत को कोसता रह जाता है. घंटों जाम के दौरान जिंदगी मानो थम-सी जाती है. बेतरतीब पार्किंग के चलते ऐसी समस्या अब आम हो चुकी है. जरूरत है परिवहन विभाग व ट्रैफिक पुलिस के साझा सहयोग से इस समस्या का त्वरित समाधान निकले. इसमें नागरिकों का भी सहयोग निहायत जरूरी है. आइये, एक सार्थक पहल करें, तो शायद हालात बदले.
Àसुधीर कुमार, राजाभीठा, गोड्डा