मीडिया जगत में इस समय जागरूकता और एक क्रांति आ रही है. विकास के लिए क्रांति बहुत जरूरी होती है. यह बदलाव का बिगुल है. आज हम पल भर में दुनियाभर में पहुंच जाते हैं, लेकिन उसके साथ-साथ अपनी सीमाओं में चलना और जिम्मेदारियों को समझना उससे भी ज्यादा जरूरी है और चुनौतीपूर्ण है. मानते हैं न इस बात को! मीडिया में अशांति को शांति में, हर्ष को विषाद में बदल देने की गजब की शक्ति है.
इसका एक ही शब्द किसी अवसाद में डूबे हुए के लिए उत्तरदान बन जाता है. इसके जरिये बच्चे अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को विस्तार देते हैं, छात्र अपनी अखिल भारतीय सेवाओं और अन्य व्यवसायिक परीक्षाओं और प्रतियोगिताओं की तैयारियां करते हैं. यह दैनिक जीवन की सलाह देता है, मनोरंजन करता है तो कभी-कभी पाठकों को चिढ़ा भी जाता है. इसीलिए तो मीडिया का सर्वत्र महत्व है.
लेकिन विकारों के वायरस से पत्रकारिता भी प्रभावित हुई है. देश के राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में भी हम सभी भ्रष्टाचार, आतंकवाद, विघटन, आर्थिक, जातीय और सामाजिक विषमताओं के बियावान में जी रहे हैं. देश और समाज को जिनसे इन विषमताओं का सामना करने की उम्मीद थी, वे इस बियावान से बाहर निकालने के बजाय खुद ही इसमें और ज्यादा धंसते जा रहे हैं.
आज निजी महत्वाकांक्षाओं का भारी दबाव हमारी शासन और न्याय व्यवस्था के लिए खतरा बन रहा है. राजनेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार की चर्चाएं चौराहों पर होती हैं. राजनीतिक दलों ने सत्ता पर कब्जा करने के लिए सारी मान-मर्यादाएं ताक पर रख दी हैं. ऐसे में मीडिया को अपनी जिम्मेदारी के तहत देश में राष्ट्रवादी और योग्य नेतृत्व के निर्माण में अपनी भूमिका निभाकर खुद को श्रेष्ठ साबित करना होगा.
दिनेश कुमार शर्मा, ई-मेल से