23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

प्रिवीपर्स खत्म, पर वसीका जारी है!

कृष्ण प्रताप सिंह वरिष्ठ पत्रकार पता नहीं आप कभी लखनऊ गये हैं और किसी वसीकेदार को खासी नवाबी ठसक से अपने वसीके की एक रुपये रकम लेने जाते देखा है या नहीं. नहीं, तो आप शायद ही जानते हों कि सरदार पटेल द्वारा देसी रियासतों के एकीकरण के वक्त से राजे-महाराजाओं को दिया जा रहा […]

कृष्ण प्रताप सिंह

वरिष्ठ पत्रकार

पता नहीं आप कभी लखनऊ गये हैं और किसी वसीकेदार को खासी नवाबी ठसक से अपने वसीके की एक रुपये रकम लेने जाते देखा है या नहीं. नहीं, तो आप शायद ही जानते हों कि सरदार पटेल द्वारा देसी रियासतों के एकीकरण के वक्त से राजे-महाराजाओं को दिया जा रहा ‘प्रिवीपर्स’ तो इंदिरा गांधी ने खत्म कर दिया, लेकिन अवध के नवाबों के वंशजों को अंगरेजों से 1816 में हुई एक संधि के आधार पर तब से किया जा रहा वसीका भुगतान अब भी जारी है.

गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स से एक डील के तहत गाजीउद्दीन हैदर दिल्ली-दरबार से बगावत करके अवध के पहले बादशाह बने, तो ‘समझ’ चुके थे कि शातिर अंगरेजों के सामने झुक कर चलने में ही भलाई है. इसलिए उन्होंने 1816 में उनसे एक संधि की, जिसके तहत तय हुआ कि अवध के नवाबों व बेगमों की जो भी संपत्ति अंगरेजों के कब्जे में है, अंगरेज उसे लौटायेंगे नहीं, बल्कि उसका मूल्यांकन कर एक फाॅर्मूले के तहत उस पर ‘ब्याज’ का भुगतान करेंगे और यह सिलसिला पुश्त-दर-पुश्त चलता रहेगा. इसे ही ‘वसीका’ कहा गया.

इसलामी धर्मशास्त्र के अनुसार, वसीका वह धन है, जो विधर्मी या काफिर से नगद रुपयों के मुनाफे के तौर पर लिया जाये या फिर वह धन, जो इस उद्देश्य से सरकारी खजाने में जमा किया जाये कि उसका सूद जमा करनेवाले के संबंधियों को मिला करे अथवा किसी धर्मकार्य या मकान की मरम्मत आदि में लगाया जाये.

फिलहाल, नवाबों के संदर्भ में यह कतई गौरव की बात न थी कि वे अपनी संपत्ति गंवा कर उसके एवज में मिलनेवाले धन पर गुजर-बसर करें. लेकिन आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को अपदस्थ कर दिये जाने के बाद उनके और बुरे दिन आये, तो वसीका उनके यह जताने का एकमात्र साधन रह गया कि वे ‘शाही घराने से’ हैं.

इस वक्त वसीका पानेवालों की संख्या कोई 18 सौ है. इसमें से 12 सौ सीधे-सीधे वसीकेदार हैं, जबकि 580 अमानतदार, जिन्हें अमानती नोट दिये जाते हैं. अब यह रकम इतनी कम रह गयी है कि वसीकेदारों को एक रुपये से लेकर 569 रुपये तक व अमानती नोट वालों को 6 पैसे से लेकर 839 रुपयों तक ही महीना मिलते हैं. इसीलिए तीन सौ से ज्यादा वसीकेदारों ने, वसीका लेना छोड़ दिया है.

लेकिन अभी भी अनेक वसीकेदार वसीके की तुच्छ-सी रकम लेने के लिए खुशी-खुशी सैकड़ों-हजारों रुपये खर्च कर देते हैं. लखनऊ में कश्मीरी मोहल्ले के नवाब मियां सैयद नकी रजा को अपने घर से वसीका दफ्तर तक जाने और वहां से आने में 50-60 रुपये खर्च करने पड़ जाते हैं और मिलते हैं सिर्फ 2 रुपये 98 पैसे. बुढ़ापे में ऐसी जहमत क्यों उठाते हैं?

यह पूछने पर नकी रजा कहते हैं- तो क्या मैं अपनी पहचान भी खत्म कर दूं? फिर इस मुल्क में कौन यकीन करेगा कि यह बूढ़ा अवध की बहूबेगम के खानदान से है.

पहचान का उनका यह जुनून तब है, जब अभी हाल तक कहा जाता था कि नवाबों के कई वंशज लखनऊ में तांगा चला कर गर्दिश के दिन काट रहे हैं और अब तो तांगों का दौर भी नहीं बचा!

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें