नवाज शरीफ खुद को भारत संग दोस्ती का पैरोकार बताते हैं. लेकिन, उनके पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुरसी संभालने के बाद से दोनों देशों के रिश्ते सुधरने की जगह रसातल की ओर जाते दिख रहे हैं.
इन महीनों में सीमापार से युद्ध विराम उल्लंघन और गोलीबारी के मामलों में जिस तरह इजाफा हुआ है, उससे शरीफ की कथनी और करनी का फर्क उजागर हो रहा है. अब कश्मीर पर शरीफ का ताजा बयान उनकी मंशा को साफ कर रहा है.
अमेरिका की अपनी चार दिनी यात्रा के रास्ते में शरीफ ने कश्मीर मामले में अमेरिका से हस्तक्षेप की गुहार लगा कर इसे अंतरराष्ट्रीय मसला बनाने की कोशिश की. कश्मीर मसला भारत–पाक विवाद की जड़ में है और इसे सुलझाये बगैर दोस्ती की गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती. लेकिन सवाल है कि क्या शरीफ मसले को सुलझाने के प्रति ईमानदार है? भारत का पक्ष है कि कश्मीर मसले को पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय वार्ता से ही सुलझाया जा सकता है.
अलग–अलग समय में पाकिस्तान ने भी इस पर सहमति जतायी है. 1972 के शिमला समझौते के दौरान दोनों देशों ने तय किया था कि वे किसी भी विवाद को आपसी बातचीत से सुलझाएंगे. पर, पाकिस्तान इस वचन का लगातार उल्लंघन करता रहा है और कश्मीर मुद्दे को औपचारिक–अनौपचारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय मंचों से उठाने की हर मुमकिन कोशिश करता रहा है.
वैसे उम्मीद के मुताबिक अमेरिकी प्रशासन ने कश्मीर विवाद में मध्यस्थता करने से दो टूक शब्दों में इनकार कर दिया है, लेकिन शरीफ का बयान कई सवालों को जन्म दे रहा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि कश्मीर में पिछले महीनों में की गयी भड़काऊ कार्रवाइयां, उसे अंतरराष्ट्रीय मसला बनाने की सुविचारित रणनीति के तहत की गयी? सवाल यह भी है कि आखिर हम कब तक पाकिस्तान और उसके प्रधानमंत्री के दोहरे खेल को सहते रहेंगे और झूठी बातचीत से खुद को तसल्ली देते रहेंगे?
जम्मू–कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी स्पष्ट कहा है कि अगर आपसी बातचीत से कोई समाधान नहीं निकलता है, तो भारत को दूसरे विकल्पों की ओर ध्यान देना चाहिए. फिलहाल नवाज शरीफ का बयान साफ इशारा कर रहा है कि आपसी बातचीत से कश्मीर मसले का हल निकालने में उनकी कोई आस्था नहीं है!