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परीक्षा का मजाक

प्रश्नपत्र लीक हो जाने के कारण केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षकों की बहाली की परीक्षा रद्द कर दी गयी है. हमारे देश में यह कोई विशेष घटना नहीं है. अब तो शायद ही कोई प्रवेश या नौकरी की परीक्षा बची होगी, जिसका कोई परचा परीक्षा से पहले बाहर न आया हो. इसके साथ अगर भर्ती के […]

प्रश्नपत्र लीक हो जाने के कारण केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षकों की बहाली की परीक्षा रद्द कर दी गयी है. हमारे देश में यह कोई विशेष घटना नहीं है. अब तो शायद ही कोई प्रवेश या नौकरी की परीक्षा बची होगी, जिसका कोई परचा परीक्षा से पहले बाहर न आया हो.
इसके साथ अगर भर्ती के लिए अवैध रूप से उत्तर-पुस्तिका भरने और पैसे के बदले परीक्षार्थियों को उत्तीर्ण करने की घटनाओं को जोड़ कर देखें, तो हमारी शिक्षा व्यवस्था और भर्ती प्रक्रिया की एक भयावह तसवीर उभरती है.
मध्य प्रदेश का व्यापमं घोटाला इसका एक प्रतीक उदाहरण है. कुछ दिन पूर्व अखिल भारतीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा के परचे लीक होने की खबर चर्चा में थी और सर्वोच्च न्यायालय को उसमें दखल देना पड़ा था. दुर्भाग्य से इस देशव्यापी समस्या के समाधान के लिए सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर कोई कारगर पहल नहीं की जा सकी है.
परचे लीक करने के पीछे संगठित गिरोह सक्रिय हैं, जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है. भ्रष्टाचार की सर्वव्यापकता का लाभ उठा कर ये गिरोह अपनी गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं. परचे लीक करने-कराने के खेल को एक सामान्य आपराधिक मामला मानना समस्या की गंभीरता को कम करके देखना होगा. यह हमारी व्यवस्था और सामाजिक चेतना में खतरनाक बीमारी की तरह है, जिसके भयावह परिणाम भुगतना होगा.
दरअसल, पिछले दशकों में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आयी शिथिलता ने अभिभावकों और छात्रों में येन-केन-प्रकारेण डिग्री और रोजगार हासिल करने की विवशता पैदा कर दी है. अगर केंद्रीय विद्यालय जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में भी अक्षम शिक्षकों की नियुक्ति होगी, तो उनसे पढ़नेवाले छात्रों की गुणवत्ता के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है.
यही बात उन डॉक्टरों, इंजीनियरों और अधिकारियों पर भी लागू होती है, जो अवैध तरीके से व्यवस्था में प्रविष्ट होते हैं. इसलिए, सार्वजनिक जीवन में बढ़ते कदाचार को सामान्य परिघटना मान कर उसके दुष्परिणामों की गंभीरता को नजरअंदाज करने की मौजूदा प्रवृत्ति में त्वरित सुधार की जरूरत है. हमें सामूहिक रूप से शिक्षा, रोजगार और प्रशासन में बेहतरी के लिए प्रयास करना होगा. हर स्तर पर जवाबदेही, पारदर्शिता और उत्कृष्टता की मांग करनी होगी.
इन समस्याओं से निपटने की जितनी जिम्मेवारी सरकार की है, उतनी ही समाज की भी है. कदाचार का घुन आनेवाले कल की तमाम संभावनाओं को कुंद कर रहा है. लेकिन, सवाल है कि क्या कदाचार को खत्म करने की चुनौती हमारी प्राथमिकताओं में शामिल है?

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