विश्व कप फुटबॉल में स्थान पाने के लिए हो रहे मैचों में भारत गत आठ सितंबर को ईरान से हार गया. छह मैचों में टीम सिर्फ दो जीत दर्ज कर सकी है. फीफा विश्व कप में भारत सिर्फ एक दफा जगह पा सका है. वर्ष 1950 में कई प्रतिद्वंद्वी टीमों द्वारा नाम वापस ले लेने के कारण आयोजन समिति ने भारतीय टीम को खेलने के लिए आमंत्रित किया था, पर टीम उस टूर्नामेंट में नहीं गयी थी.
हालांकि, बाद के इतिहास को देखें, तो भारत ने एशिया कप में 1964 में द्वितीय स्थान पाया था, जबकि एशियाई खेलों में 1951 और 1962 में चैंपियन रहा और 1956 के ओलिंपिक खेलों में चौथा स्थान हासिल किया था. 1951 से 1962 तक भारतीय फुटबॉल का शानदार वक्त था, जब सैयद अब्दुल रहीम के प्रबंधन में टीम एशिया की बेहतरीन टीम बन गयी थी. परंतु 1964 से 1972 तक टीम कोई स्थायी प्रबंधक नहीं नियुक्त कर सकी और भारतीय फुटबॉल का पराभव शुरू हो गया, जो अब तक जारी है.
फुटबॉल के विकास का जिम्मा अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन के पास है, जो केंद्र सरकार के अधीन स्वायत्त संस्था है. राज्यों की 33 संस्थाएं और विभिन्न संस्थानों के संगठन इससे संबद्ध हैं. देश के अन्य खेल संस्थाओं की तरह फेडरेशन कई गुटों में आपसी खींचतान का शिकार है.
खिलाड़ियों के चयन में भेदभाव, समुचित प्रशिक्षण और संसाधनों का अभाव, प्रतिभाओं को निखारने के प्रति लापरवाही और अंतरराष्ट्रीय अनुभवों की कमी फुटबॉल की दुर्दशा के मुख्य कारण हैं. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पास 1.8 खरब रुपये की मिल्कियत है. इसकी तुलना में इस वर्ष के केंद्रीय बजट में सभी खेलों के लिए आवंटित 886.57 करोड़ रुपये की राशि कुछ भी नहीं है. यदि राज्य सरकारों, अन्य संस्थाओं, प्रायोजकों के आवंटन को जोड़ लें, तो पूरी राशि दो हजार करोड़ रुपये से कम ही होगी.
पिछले साल क्रिकेट बोर्ड के कानूनी खर्च का ही बजट 334.55 करोड़ रुपये था. क्रिकेट में छोटी-बड़ी उपलब्धियों के लिए पुरस्कारों, प्रोत्साहनों और प्रायोजकों की झड़ी लग जाती है, पर अन्य खेलों के साथ ऐसा नहीं होता है. फीफा सूची में भारतीय फुटबॉल टीम 155वें स्थान पर है. वर्ष 2017 में अंडर-17 विश्व कप का आयोजन भारत में होना है.
यह एक बड़ा मौका है. अगर सरकार, खेल संस्थाएं और समाज मिल जुल कर चुनौतियों का सामना करें, भ्रष्टाचार खत्म हो और खिलाड़ियों को मौके मिलें, तो फुटबॉल में भी भारत उल्लेखनीय मुकाम पा सकता है.