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पुरुष प्रधान मानसिकता ही बाधक

डॉक्टर मरीज की नब्ज देख कर उसका चेहरा और जेब देख कर रोग तथा उसकी गंभीरता का पता लगा कर दवाई देता है, लेकिन एशियाई देशों का पुरुष प्रधान समाज सदियों से खत्म न होनेवाले ऐसे रोगों का शिकार है, जिसके चलते वह औरत को औरत नहीं, घर का काम करनेवाली मशीन और गुलाम समझता […]

डॉक्टर मरीज की नब्ज देख कर उसका चेहरा और जेब देख कर रोग तथा उसकी गंभीरता का पता लगा कर दवाई देता है, लेकिन एशियाई देशों का पुरुष प्रधान समाज सदियों से खत्म न होनेवाले ऐसे रोगों का शिकार है, जिसके चलते वह औरत को औरत नहीं, घर का काम करनेवाली मशीन और गुलाम समझता है.
पुरुष की नजर में वह केवल भोग्या है, जिसका एक उपभोग मात्र वंश चलाने के लिए ही किया जाता है.ऐसे माहौल में यदि कोई व्यक्ति पुरुष प्रधानता के खिलाफ आवाज उठाता है, तो वह कट्टरपंथियों की आंखों की किरकिरी बन जाता है. वेद-पुराण हो या हदीस-कुरान उसमें भी पुरुषों की ही हिमायती की गयी है. आखिर क्यों न हो, इसे भी तो पुरुष ने ही लिखा था. जब कोई लड़की के किताब से प्रेम पत्र मिलता है, तो मां-बाप बवाल मचा देते हैं, पर लड़के की किताबों से मिले खतों पर चुप्पी साध ली जाती है. पुरुष प्रधान समाज में पुरुष सदैव मुखौटों का इस्तेमाल करता है. दूसरे की पत्नी यदि आपसे हंस कर दो बात कर ले, तो आपकी बांछे खिल जाती है.
आप कहेंगे-वाह क्या फ्रैंक लेडी है, लेकिन यदि आपकी बीबी किसी शख्स से बात कर ले तो पति का रवैया उसके प्रति संदेहास्पद हो जाता है. यह कैसी आधुनिकता है मर्दों की. पुरुष कितना भी पढ़ा-लिखा, आधुनिक ख्यालातों का लगे हकीकत में वह औरतों की सच्ची कड़वी बात सुनने को तैयार नहीं है.
आज पढ़े-लिखे, सभ्य और सुसंस्कृत समाज की अभिजात्य महिलाएं भी कभी-न-कभी पुरुष हिंसा या शोषण की शिकार जरूर होती रहती हैं. पुरुष प्रधान मानसिकता ही महिलाओं के विकास में बाधक बन कर खड़ी है और इसे दूर करने के लिए भी पुरुषों को ही आगे आना होगा.
– रामशरण प्र यादव,
कन्हाई इंटर स्कूल, नवादा

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