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नाम रखने और हटाने का खेल
विवेक शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार लुटियन दिल्ली के खासमखास औरंगजेब रोड का नाम अब होगा एपीजे अब्दुल कलाम रोड. औरंगजेब रोड को इतिहास के पन्नों में धकेलने की कोशिशें तो लंबे समय से चल रही थीं, लेकिन कामयाबी अब मिली है.गौरतलब है कि औरंगजेब रोड पर ही पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का भी बंगला […]
विवेक शुक्ला
वरिष्ठ पत्रकार
लुटियन दिल्ली के खासमखास औरंगजेब रोड का नाम अब होगा एपीजे अब्दुल कलाम रोड. औरंगजेब रोड को इतिहास के पन्नों में धकेलने की कोशिशें तो लंबे समय से चल रही थीं, लेकिन कामयाबी अब मिली है.गौरतलब है कि औरंगजेब रोड पर ही पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का भी बंगला है.
दरअसल, दिल्ली में अहम जगहों के नाम 70 के दशक से बड़े पैमाने पर बदलने लगे. उन नामों को खासतौर पर बदला गया, जो अंगरेजों के नामों पर थे.
मसलन, देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद अंतरिम सरकार के दौर में 1, विक्टोरिया रोड के बंगले में रहते थे. इसलिए इस रोड का नाम हो गया राजेंद्र प्रसाद रोड.
देश आजाद हुआ, तो बड़े सरकारी बाबुओं के लिए शान नगर और मान नगर नाम से दो कालोनियां बनीं.बाद में इनके नाम कर दिये गये रविंद्र नगर और भारती नगर. कारण, लोगों का कहना था कि इन नामों से लगता है मानो देश में अब भी राजे-रजवाड़ों का राज हो.
साल 1911 में देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दी गयी. उसकेसाथ ही अंगरेजों ने नयी इमारतों के निर्माणकार्य को गति देने का मन बनाया, जहां उनकेखासमखास अधिकारी रहें और काम कर सकें.
इस क्रम में राष्ट्रपति भवन (वाइसराय निवास),साउथ ब्लॉक, नार्थ ब्लॉक, तीन मूर्ति भवन और कनाट प्लेस समेत बहुत सी इमारतोंके निर्माण का फैसला लिया गया.
इस बड़े काम को अंजाम देनेकेलिए ब्रिटेन से एडवर्ड लुटियंस को 1912 में भारत भेजा गया. वे मंजे हुए टाउन प्लानर और आर्किटेक्ट थे. गोरे वास्तुकारोंकेबीच बातचीत का दौर चालू हो गया. इनकी बैठकों में सरदार सुजान सिंह (लेखक खुशवंत सिंहकेदादा, पिता सोबा सिंह) वगैरह स्थानीय ठेकेदार भी हिस्सा लेने लगे.
1920 केआसपास वाइसराय निवास,जो1947केबाद से भारतकेराष्ट्रपति का निवास और दफ्तर केरूप में इस्तेमाल होता है, का निर्माण शुरू हुआ. यह भव्य इमारत 1929में तैयार हुई.
हालांकि, दिल्ली में तमाम नेताओं के नामों पर रोड, पार्क और दूसरी जगहें हैं, पर दिल्ली की महान इमारतें बनानेवाले वास्तुकार लुटियंस के नाम पर कुछ नहीं है. उन्होंने राष्ट्रपति भवनकेसाथ-साथ इंडिया गेट, राष्ट्रीय अभिलेखागार, जनपथ, राजपथ और गोल मार्केट का भी डिजाइन तैयार किया था.
हैरानी होती है कि नयी दिल्ली को बनाने में खास योगदान देनेवाले सरदार सोबा सिंह के नाम पर यहां कोई सड़क, लेन या पार्क नहीं है.
इतिहासकार आरवी स्मिथ ने इस पर अफसोस जताया कि जिस शख्स ने राजधानी की तमाम खास इमारतों का ठेकेदार के रूप में निर्माण करवाया हो, उसके नाम पर जनपथ स्थित उसके बंगले के बाहर कोई पत्थर तक नहीं लगा है.
यही हाल महान वास्तुकार जोसेफ एलेन स्टीन के साथ भी किया गया, जिन्होंने दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, इंडिया हैबिटेट सेंटर, त्रिवेणी कला संगम समेत अनेक इमारतों के डिजाइन तैयार किये.
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