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धर्म आधारित आबादी
जनगणना के धर्म आधारित आंकड़ों के मुताबिक, देश की करीब 121 करोड़ आबादी में हिंदू धर्म माननेवालों की संख्या करीब 96.63 करोड़ है, जबकि इसलाम धर्म माननेवालों की संख्या करीब 17.22 करोड़. इस तथ्य के मुताबिक तो भारत पूर्व की तरह हिंदू-बहुल देश ही कहलायेगा, जहां हिंदुओं की आबादी मुसलिम आबादी की तुलना में पांच […]
जनगणना के धर्म आधारित आंकड़ों के मुताबिक, देश की करीब 121 करोड़ आबादी में हिंदू धर्म माननेवालों की संख्या करीब 96.63 करोड़ है, जबकि इसलाम धर्म माननेवालों की संख्या करीब 17.22 करोड़. इस तथ्य के मुताबिक तो भारत पूर्व की तरह हिंदू-बहुल देश ही कहलायेगा, जहां हिंदुओं की आबादी मुसलिम आबादी की तुलना में पांच गुना से भी ज्यादा है. हालांकि हिंदुत्व की राजनीति करनेवालों को आंकड़ों की यह व्याख्या स्वीकार नहीं है.
उन्हें लगता है कि भारत में मुसलिम आबादी के बढ़ने की रफ्तार हिंदू आबादी की बढ़वार की रफ्तार से ज्यादा है, इसलिए हिंदू चेत जाएं नहीं तो एक दिन अल्पसंख्यक की श्रेणी में आ जायेंगे! तभी तो सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि केंद्र सरकार को मुसलिम आबादी की बढ़वार कम करने के उपायों पर गौर करना चाहिए.
ऐसा कहने के पीछे तर्क यह है कि 2001 की जनगणना में हिंदुओं की आबादी भारत की कुल आबादी में 82 फीसदी थी, जो अब घट कर 80 फीसदी से कुछ नीचे आ गयी है, जबकि मुसलिम आबादी करीब 13 फीसदी से बढ़कर करीब 14 फीसदी हो गयी है. देश में अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों में इसाई 2.3 फीसदी और सिख 2.16 फीसदी हैं.
लेकिन, यहां जरा ठहर कर, देश में मुसलिम आबादी बढ़ने के तथ्य की थोड़ी और पड़ताल करने की जरूरत है. हकीकत यह है कि भारत में जिस रफ्तार से मुसलिम और हिंदू आबादी बढ़ रही है, उसमें दोनों धर्मो के लोगों की संख्या के बराबरी तक पहुंचने में कम-से-कम 200 वर्ष लगेंगे. तथ्य यह भी है कि मुसलिम आबादी की बढ़वार धीमी भी हो रही है. 1991 से 2001 के दौरान देश में मुसलिम आबादी में 29 फीसदी की वृद्धि हुई थी, जबकि हिंदू आबादी में 19 फीसदी की.
लेकिन, 2001 से 2011 के बीच मुसलिम आबादी में करीब 24 फीसदी का इजाफा हुआ, जबकि हिंदू आबादी में करीब 16 फीसदी का. यानी मुसलिम आबादी की बढ़वार एक दशक पहले की तुलना में इस बार पांच प्रतिशत कम हुई है और यह अब तक की सबसे कम वृद्धि दर है.
तथ्य यह भी बताते हैं कि मुसलिम आबादी की बढ़वार असम सहित उन राज्यों में काफी ज्यादा है, जहां उनमें गरीबी और निरक्षरता ज्यादा है, जबकि केरल सहित उन राज्यों में यह आबादी काफी कम रफ्तार से बढ़ी है, जहां उनमें साक्षरता के साथ जागरूकता आयी है.
ऐसे में यह आंकड़ा सांप्रदायिकता की राजनीति से परे जाकर मुसलिम समुदाय की बेहतरी के लिए गंभीर प्रयास करने की जरूरत को भी रेखांकित करता है. धर्म आधारित जनगणना का मकसद भी यही है.
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