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आस्था की परिभाषा को जानें

इस पत्र के माध्यम से मैं बताना चाहता हूं कि आस्था श्रद्धा का विषय है. वह किसी के प्रति हो सकता है. यह पेड़, पौधा, कंकड़, पत्थर, किसी ग्रंथ अथवा किसी व्यक्ति से हो सकता है. यदि कोई कहे कि वह मेरे प्रति या मेरे धर्म के प्रति ही होना चाहिए, तो इसमें उसकी संकीर्णता […]

इस पत्र के माध्यम से मैं बताना चाहता हूं कि आस्था श्रद्धा का विषय है. वह किसी के प्रति हो सकता है. यह पेड़, पौधा, कंकड़, पत्थर, किसी ग्रंथ अथवा किसी व्यक्ति से हो सकता है.
यदि कोई कहे कि वह मेरे प्रति या मेरे धर्म के प्रति ही होना चाहिए, तो इसमें उसकी संकीर्णता झांकती है. धर्म की व्याख्या वह सांप्रदायिक होकर कर रहा है. कालिदास, तुलसीदास, कबीरदास सबके आदरणीय हैं. गीता, कुरान और बाइबिल सभी के लिए उपदेश दे रहे हैं. रसखान के लिए उनके कृष्ण प्यारे हैं. वे लिखते हैं, सौभाग्यशाली मनुष्य वह है, जो ब्रजवासी है. नजीर साहब गणोश जी पर फिदा हैं.
वे गणोश जी की इबादत करते कहते हैं, ‘ये दिल में ठान अपने और छोड़ सबका साथ. तू भी नजीर चरणों में अपना झुका दें माथ.’ फिर कुछ माह पहले द्वारिका पीठ के शंकराचार्य का यह कहना कि हिंदुओं को साईं की पूजा नहीं करनी चाहिए, उनकी कैसी भावना उजागर करती है?
चंद्रशेखर भारद्वाज, सारण

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