जयदीप कर्णिक
पत्रकार, आइबीएन-7
अब्दुल कलाम की तसवीरों से अखबार रंगे हुए हैं. सोशल मीडिया पर भावनाओं का सैलाब उमड़ आया है. सब कुछ स्वमेव. कोई मजबूरी नहीं, कोई दबाव नहीं. उसने दिलों को, भावनाओं को, सपनों को और उम्मीदों को बहुत करीब से छुआ. इसीलिए डॉ अबुल पाकिर जैनुल आब्दीन अब्दुल कलाम उस मेयार को छू पाये, जहां कोई इनसान से फरिश्ता हो जाता है और फरिश्ते से कलाम को पा जाता है.
इनसान बनने की दौड़ में भागे चले जा रहे समाज को जब अपने ही बीच से निकला कोई बंदा ठिठक कर सोचने को मजबूर कर देता है, तो समाज उसके पीछे हो लेता है. अंधी दौड़ की बजाय सफर को मंजिल बना लेता है.
जब कोई अखबार बेचनेवाला देश का रत्न बन जाता है, राष्ट्रपति बन जाता है, मिसाइल मैन बन जाता है, स्वप्नदृष्टा बन जाता है, तो जनता को उसमें उम्मीद नजर आती है. उन्हें लगता है कि यह देश केवल लाल बत्ती में गुजरते वीआइपी का नहीं है, जुगाड़ से पद पा लेनेवालों के लिए नहीं है, परिवारों से अवतरित हुए शासकों का नहीं है, बल्कि गुदड़ी के लालों का भी है.
डॉ अब्दुल कलाम हिंदुस्तान के आसमान पर तब उभरे, जब निराशा और नाउम्मीदी की धुंध छाई हुई थी. बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया एटम बम बना कर हमें आंख दिखा रही थी. चीन और पाकिस्तान से युद्ध का दंश हम ङोल चुके थे. हमारी ही कोख से उपजा हमारा पड़ोसी हमारी नाक में दम किये हुए था. तब एक-एक कर हमें अग्नि, पृथ्वी और आकाश जैसी मिसाइलें मिलीं.
पोखरण में परमाणु की धमक मिली और मिला मिसाइल मैन के रूप में पुरुषार्थ और स्वाभिमान का प्रतीक. इस पुरुषार्थ को को उन्होंने जो शब्द दिये, वो भी बाकमाल थे- ‘हम शांति चाहते हैं. शक्ति ही शक्ति का सम्मान करती है. इसीलिए शांति बनाये रखने के लिए शक्ति का यह अर्जन जरूरी है.’
उनके जीवन में मिसाइल और वीणा का योग महज संयोगभर नहीं था. हम मिसाइल बना कर वीणा बजाने में मशगूल हो सकते थे, क्योंकि अब कुछ समय हमें कोई परेशान नहीं करेगा. यह विडंबना ही सही, पर ये सच है.
मानवीय मूल्यों के संवर्धन के लिए शांति आवश्यक है और शांति बारास्ता शक्ति ही आ रही है, तो ऐसे ही सही. इसीलिए कलाम उस भारत के प्रतीक बने, जो शक्ति और शांति के संतुलन को जानता है और साथ लेकर चलता है.
उन्होंने राष्ट्रपति के पद को महज शोभा का नहीं बने रहने दिया. वे ‘पाश’ की कविता को बहुत आमफहम अंदाज में जनता तक लगातार पहुंचाते रहे- हमें सपने देखने चाहिए, हम सपने ही नहीं देखेंगे, तो उन्हें पाने के लिए आगे कैसे बढ़ेंगे?15 अक्तूबर, 1931 को रामेश्वरम के एक साधारण परिवार में जन्मे कलाम ने हमें सपने देखना सिखाया.
हमें प्रेरणा दी कि हम भी कर सकते हैं. मुङो खुशी है कि जब वे आइआइएम इंदौर में भाषण देने आये थे, तो मैं उन्हें छू पाया था; वह जैसे कि उन्होंने देश के सपनों को छुआ. आज पूरा देश उनको नम आंखों से विदाई दे रहा है.देश के इस नायक, भारत रत्न, पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को विनम्र श्रद्धांजलि.