जब हमारे 32 प्रतिशत सांसद अपराधी होकर अपराधियों को बचाते रहेंगे और इनसान पिसता चला जायेगा, जब संविधान और सर्वोच्च संस्था मूकदर्शक हो जायेंगे, जब देश में कानून का शासन समाप्त हो जायेगा और सजा मात्र गरीबों और आम जनता के लिए रह जायेगी, तब तो अब जन आंदोलन और जन क्रांति का विकल्प ही शेष रह जायेगा जनता के पास.
सांसद जब ऐसे किसी विधेयक पर अपनी सहमति देते हों, जिससे अपराधियों को बचाया जा रहा हो, तब क्या संसद की सर्वोच्चता बची रह जायेगी? आज जनता इन तमाम सवालों का एक जवाब चाहती है. क्या इतिहास फिर करवट ले रहा है? क्या हम आजादी के 66 वर्ष भी नहीं बिता पायेंगे एक जिम्मेदार लोकतंत्र के साये में? तमाम राजनीतिक दल हमाम में नंगे हो चुके हैं. यह कहने का समय है कि ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’.
डॉ अरुण सज्जन, जमशेदपुर