।।सतीश उपाध्याय।।
(प्रभात खबर,पटना)
मैंनें अपनी बालकनी से देखा कि मेरी मकान मालकिन अपने बच्चे को स्कूल से लाते समय रास्ते भर बड़बड़ाती आ रही थीं. मुङो उन्हें टोकते हुए संकोच हो रहा था, पर अंतत: मैंने उनसे पूछ ही लिया- क्या हुआ पिंकी जी? इतने गुस्से में क्यों हैं? उन्होंने कहा- क्या बतायें आपको, इन कॉन्वेंट वालों ने जीना मुश्किल कर दिया है. बच्चे से इतना काम कराते हैं कि पूछो मत. ऊपर से मां-बाप को भी हमेशा दबाव में रखते हैं.
आपको बच्चे के सामने ये नहीं करना चाहिए, वो नहीं करना चाहिए. . कह-कह कर कान पका दिया. हर शनिवार को होनेवाली पैरेंट्स मीटिंग में तो मैं तो परेशान हो जाती हूं. अंगरेजी के ऐसे-ऐसे भारी-भरकम शब्द मेरे सामने रखे जाते हैं कि कुछ समझ में नहीं आता. बस सब गिटिर-पिटिर करते रहते हैं. जो बात मुङो समझ में आती है, उसके लिए हां में हां मिला देती हूं, जो नहीं समझ में आती, उसके लिए वही पुरानी शैली ‘या.. या..’ का प्रयोग कर बच के निकल जाती हूं. अभी देखिए न, बच्चे को स्कूल से ला रही थी, इतनी कड़ी धूप में अपने बच्चे के नाजुक कंधों टंगा भारी बैग देख कर द्रवित हो गयी.
बच्चेके वजन से ज्यादा तो बैग का वजन होता है. हम लोगों ने भी पढ़ाई की है, लेकिन ऐसी दुर्दशा कभी न मैंने ङोली और न ही मेरे मां-बाप ने. मैंने कहा, आपको तो खुश होना चाहिए कि इतनी छोटी उम्र में बच्च कई सारे विषयों के बारे में सीख रहा है. उन्होंने कहा, क्या खाक सीख रहा है? स्कूल से आते ही बच्च सीधे बिस्तर की ओर भागता है. सामान्य तरीके से तो यह कभी बात ही नहीं करता. इसके मासूम चेहरे पर खुशी तो जैसे गायब होती जा रही है. इसकी आखें हमेशा नींद में खो जाना चाहती हैं. लेकिन क्या करूं, यह समय और समाज का दबाव ही है कि न चाहते हुए भी अभी से इसको इस भागते-दौड़ते समाज के लायक बनाना पड़ रहा है. वैसे आप लोग क्यों नहीं कुछ करते, ऐसे तानाशाह कॉन्वेंट स्कूल वालों के खिलाफ कि वे बच्चों को कम से कम मशीन समझना तो छोड़ दें.
मैं उनकी बात से प्रभावित हुआ, सोचा कि चलो आज इसी मुद्दे को लेकर स्टोरी करता हूं, दो-चार कान्वेंट स्कूल वालों को भी लपेटे में लूंगा. तभी घूमने के लिए बाहर निकला, रास्ते में मैंने देखा कि एक छोटा बच्च अपनी पीठ पर कचरे का थैला लादे हैं और कूड़े से शराब की बोतलें चुन रहा है. उसके कद से बड़ा उसका बोरा था. जब वह चल रहा था, तब उसका बोरा बार-बार जमीन से रगड़ खा रहा था. लेकिन उसने होशियारी दिखाते हुए सर को आगे की ओर झुकाया, जिससे उसकी पीठ झुक गयी, जिससे बोरा जमीन से थोड़ा ऊपर उठ गया और वह बोरे को पीठ पर लाद कर चलने लगा. दो दृश्य, दो कंधे, दो बोझ मेरे सामने थे. मुङो समझ में नहीं आ रहा था, किसका बोझ कम करने के लिए स्टोरी करूं. क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?