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बलात्कार पर ओछे बयानों से बाज आयें

जन-कल्याण और समाज को अपराधमुक्त बनाने का वादा और दावा करनेवाले इन राजनेताओं के ऐसे विचार समाज में गहरे तक व्याप्त उस सोच की सूचना देते हैं, जो महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक मानती हैं तथा उनके साथ अपराध अंजाम देने को अपना अधिकार मानती है. जीवन-मूल्यों में परंपरागत और आधुनिक सभ्यता की अनेक […]

जन-कल्याण और समाज को अपराधमुक्त बनाने का वादा और दावा करनेवाले इन राजनेताओं के ऐसे विचार समाज में गहरे तक व्याप्त उस सोच की सूचना देते हैं, जो महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक मानती हैं तथा उनके साथ अपराध अंजाम देने को अपना अधिकार मानती है.
जीवन-मूल्यों में परंपरागत और आधुनिक सभ्यता की अनेक विशिष्टताओं के बावजूद महिलाओं के प्रति भारतीय समाज का रवैया बहुत ही नकारात्मक और निराशाजनक है. महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते अपराधों और उन अपराधों के अनेक विश्लेषणों में यह परिदृश्य चिंताजनक रूप से परिलक्षित होता है.
यह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन राजनेताओं पर देश और समाज को सर्वागीण विकास और बराबरी की राह पर ले चलने की जिम्मेवारी है, उनके बयान और क्रिया-कलाप न सिर्फ पूर्वाग्रहों से भरे पड़े हैं, बल्कि उनमें खतरनाक दुर्भावनाएं भी मौजूद हैं.
शनिवार को देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के एक मंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता तोताराम यादव ने कहा कि बलात्कार जैसी कोई चीज ही नहीं होती है और महिलाएं अपनी इच्छा से पुरुषों को बलात्कार की अनुमति देती हैं. उन्होंने यह भी कह दिया कि ऐसे मामलों में सरकार की कोई जवाबदेही नहीं बनती है. लेकिन ऐसी सोच रखनेवाले तोताराम अकेले मंत्री नहीं हैं. गोवा में हाल में दो महिलाओं के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म पर टिप्पणी करते हुए गोवा की भाजपा सरकार में मंत्री दिलीप पारुलेकर ने इसे एक ‘छोटी’ घटना की संज्ञा देते हुए बलात्कार के आरोपितों को ‘नादान’ तक कह दिया.
बलात्कार सबसे जघन्य अपराधों में एक है और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, हमारे देश में प्रतिदिन औसतन 93 महिलाएं इस कुकृत्य का शिकार बनती हैं. वर्ष 2001 से 2013 के बीच की घटनाओं का विश्लेषण कर कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव ने पिछले वर्ष जानकारी दी थी कि इस अवधि में भारत में हर आधे घंटे में बलात्कार की एक घटना हुई. ये आंकड़े उन घटनाओं पर आधारित हैं, जिनकी रिपोर्ट की गयी. कानून-व्यवस्था की लापरवाही और दमनकारी सामाजिक व्यवस्था के कारण बलात्कार और शारीरिक उत्पीड़न की कई घटनाएं जानकारी में ही नहीं आ पाती हैं. विभिन्न न्यायालयों में एक लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं और दोषियों को दंडित करने के मामले में हमारा रिकॉर्ड बहुत खराब है.
ऐसे में इन मंत्रियों के बयान न निंदनीय ही नहीं, भयावह भी हैं. खतरनाक यह भी है कि इस तरह के घृणास्पद बयान देनेवाले नेताओं की एक लंबी श्रृंखला है तथा इसमें लगभग हर राजनीतिक दल का नेता शामिल है. लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार को मामूली गलती कहा था.
दिल्ली में 2012 में हुए निर्भया मामले के बाद आंध्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बोत्सा सत्यनारायण ने बलात्कार से बचने के लिए महिलाओं को घर के अंदर रहने की सलाह दी थी. महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता आरआर पाटिल ने कहा था कि फिल्मों की वजह से बलात्कार होते हैं और सरकार हर जगह पुलिस खड़ा नहीं कर सकती है. छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के गृह मंत्री रामसेवक पैकरा ने बलात्कार को अनजाने में हुई घटना बताया था.
इसी राज्य के पूर्व गृह मंत्री नानकी राम कंवर ने कहा था कि बलात्कार भाग्य की गड़बड़ी से होते हैं और इस बारे में ज्योतिषी ही सही बता सकते हैं. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौड़ ने तो यहां तक कह दिया था कि बलात्कार महिलाओं की मर्जी से भी होते हैं. समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी ने भी इसके लिए महिलाओं को जिम्मेवार मानते हुए उनके पहनावे पर दोष मढ़ दिया था.
पुड्डुचेरी के शिक्षा मंत्री टी त्यागराजन ने छात्राओं के लिए लंबे कोट की सिफारिश की थी, ताकि पुरुषों में ‘बुरे ख्याल न पैदा हों’. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में बलात्कार की घटनाओं को झूठ कह कर अपनी सरकार के विरुद्ध षडय़ंत्र करार दिया था. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने बलात्कार का समाधान बाल विवाह बताया था.
जन-कल्याण और समाज को अपराधमुक्त बनाने का वादा और दावा करनेवाले इन राजनेताओं के ऐसे विचार समाज में गहरे तक व्याप्त उस सोच की सूचना देते हैं, जो महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक मानती हैं तथा उनके साथ अपराध अंजाम देने को अपना अधिकार मानती है.
विडंबना यह है कि खाने-पीने की चीजों से लेकर पहनने-ओढ़ने ढंग तक को बलात्कार के कारणों में गिननेवाले ये राजनेता कभी इसके पीछे के वास्तविक कारणों को जानने-समझने की कोशिश नहीं करते. सत्ता-सुख भोगने के चक्कर में पड़े इन नेताओं को जागरुकता के प्रसार तथा न्याय-प्रक्रिया की बेहतरी के जरिये देश की आधी आबादी के विरुद्ध भयावह हिंसा की रोकथाम का गंभीर प्रयास करना चाहिए.

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