कृष्णकांत
पत्रकार
मैंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से लक्ष्मी नगर जाने के लिए ऑटो किया. ऑटो वाले ने बस इतना पूछा कि कहां जाना है और मीटर सेट करके चल पड़ा. दिल्ली में मीटर होने के बाद भी शायद कोई ऑटो वाला हो, जो किराये के लिए अलग से बात न करता हो.
हालांकि, ज्यादातर मीटर के हिसाब से चलने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन पहले वे बिना मीटर चलाये पैसे की बात करते हैं. अगर ग्राहक बिना मीटर चलने को मान गया, तो उन्हें दस-बीस रुपये अतिरिक्त मिल जाते हैं. इसलिए मैंने पूछा, आपने पैसे की बात नहीं की? वो बोला, पैसे की क्या बात करनी? मीटर चालू कर दिया है. जो बनेगा, दे देना.
ड्राइवर सीट के ठीक सामने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की फोटो वाला एक पोस्टर लगा था, जिसमें दिल्ली में कई अधिकारियों की गिरफ्तारी और तबादले कर भ्रष्टाचार खत्म करने की बात कही गयी थी. पोस्टर देख कर मैंने ड्राइवर से राय लेनी चाही, क्योंकि चुनाव में ऑटो यूनियनों ने केजरीवाल का जम कर प्रचार और समर्थन किया था.
चुनाव के दौरान जो रुझान दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं का था, वही ऑटो वालों का भी था यानी केंद्र में मोदी और दिल्ली में केजरीवाल. उस दौरान ऑटो वालों से बात करने पर भ्रष्टाचार खत्म करने को लेकर सबसे ज्यादा उम्मीद में वे ही दिखते थे. व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार का उन पर सीधा असर पड़ता है, क्योंकि उन्हें यातायात पुलिस को रोजाना रिश्वत देनी पड़ती है.
यह रिश्वत लेने के लिए अकसर पुलिस वाले बेकार के बहाने बनाते हैं और वे चालान न काट कर कुछ पैसा लेकर उन्हें जाने देते हैं. चुनावों के दौरान कम से कम ऑटो वालों का प्रमुख मुद्दा यही था कि अगर आप सरकार बनती है, तो उन्हें रिश्वत नहीं देनी पड़ेगी. पिछली 49 दिनों की आप सरकार में यह हुआ भी था. ऑटो वालों का दावा था कि 49 दिनों में कभी किसी पुलिस वाले ने रिश्वत नहीं मांगी. इसलिए दोबारा चुनाव हुए, तो उन्होंने जम कर आप का समर्थन किया था.
मैंने पूछा, आम आदमी पार्टी की सरकार बने कई महीने हो गये. केंद्र में मोदी सरकार को भी एक साल हो गये. क्या कुछ बदलाव आया? वह बिदकते हुए बोला-भाई साहेब! कोई बदलाव-वदलाव नहीं आना था, न आया. यह राजनीति बड़ी गंदी चीज है. मैंने कहा- मोदी जी कह रहे हैं कि अच्छे दिन आ गये. केजरीवाल कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार खत्म हो गया. हुआ नहीं क्या?
वह बोला- उनके कहने से क्या होता है? मैं दस साल से दिल्ली में ऑटो चला रहा हूं. आज तक यहां एक कमरा नहीं ले पाया. ऑटो चलाता हूं, इसी में सो जाता हूं. मैं पहले भी बेघर था, आज भी बेघर हूं. बदलाव यही कह लो कि पुलिस को दो-चार सौ नहीं देना पड़ता, तो उसके बदले महंगाई बढ़ रही है. जो चीज एक साल पहले 10 रुपये में थी, वह अब 12-15 में है.
हमारी जेब तो तब भी कटती थी, अब भी कटती है. नेताओं का काम ही है वादे करना, वोट लेना और फिर राज करना. हमें तो बच्चा पालने के लिए हाड़-तोड़ मेहनत करनी है.. वह देर तक बोलता रहा, मैं सुनता रहा. मेरा घर आ गया, लेकिन उसकी बातें खत्म नहीं हुई थीं..