21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

राहुल जी, अब तो जिम्मेवारी समझिए!

यदि राहुल सचमुच मोदी सरकार को ‘सूट-बूट की सरकार’ और उसकी नीतियों को जन-विरोधी मानते हैं, तो उन्हें ध्यान विरोध के मुद्दों पर केंद्रित करना चाहिए, न कि अपनी पार्टी के कुछ बड़बोले नेताओं की राह पर चल कर सुर्खियां बटोरने पर. राहुल गांधी करीब दो महीने के अज्ञातवास के बाद, संसद के बजट सत्र […]

यदि राहुल सचमुच मोदी सरकार को ‘सूट-बूट की सरकार’ और उसकी नीतियों को जन-विरोधी मानते हैं, तो उन्हें ध्यान विरोध के मुद्दों पर केंद्रित करना चाहिए, न कि अपनी पार्टी के कुछ बड़बोले नेताओं की राह पर चल कर सुर्खियां बटोरने पर.

राहुल गांधी करीब दो महीने के अज्ञातवास के बाद, संसद के बजट सत्र के आखिरी दिनों में जब लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर जनता की उपेक्षा कर कॉरपोरेट हितों को प्राथमिकता देने का आरोप मढ़ रहे थे, तब उन्हें एक नये तेवर में देखा गया था.

बाद के उनके कई भाषणों से यह उम्मीद बढ़ी थी कि वे एक प्रमुख विपक्षी दल के नेता की भूमिका निभाने की ओर अग्रसर हैं. लेकिन, दुर्भाग्य से समर्थकों-प्रशंसकों की वाहवाही में हमारे नेताओं का राजनीतिक मर्यादा एवं शालीनता से बहक जाना एक परिपाटी-सी बनती जा रही है. राहुल गांधी भी इसके अपवाद नहीं हैं.

पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की एक बैठक को लेकर कांग्रेस की छात्र इकाई की एक सभा में राहुल ने यह टिप्पणी कर दी कि प्रधानमंत्री मोदी ने अर्थशाी डॉ सिंह को घंटे भर की ‘पाठशाला’ में ‘अर्थशास्‍त्र का पाठ समझने के लिए’ बुलाया था. इस तरह कीहल्की बात अगर किसी छुटभैये नेता ने कही होती, तो इसे नजरअंदाज किया जा सकता था.

परंतु राहुल गांधी न सिर्फ कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं, बल्कि उस परिवार के वारिस भी हैं, जिसने देश को तीन प्रधानमंत्री दिये. उस परिवार की राजनीतिक विरासत पर अगर राहुल गांधी का दावा है, तो उस परिवार से संबद्ध राजनेताओं की विशिष्टताओं को आत्मसात करने का दायित्व भी उनका है. विभिन्न पार्टियों के नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं, एक-दूसरे की नीतियों की आलोचना करते रहते हैं. यह व्यवहार लोकतांत्रिक परंपरा और आवश्यकता भी है.

लेकिन, विपरीत ध्रुवों पर खड़े लोग भी शिष्टाचारवश, सामाजिक आचार-व्यवहार के कारण तथा किसी मसले पर सलाह-मशविरे के लिए मिलते हैं. सदन में भी अक्सर देखा जाता है कि विपक्ष भी सरकारी प्रस्ताव और विधेयकों के पक्ष में मतदान करता है. ऐसे में मोदी-मनमोहन मुलाकात को राहुल गांधी द्वारा इस तरह अभिव्यक्त किया जाना उनके सतही सोच को ही इंगित करता है.

सरकार का पहला साल पूरा होने पर नरेंद्र मोदी ने दो पूर्व प्रधानमंत्रियों- एचडी देवगौड़ा और डॉ मनमोहन सिंह- को नीतियों पर राय-मशविरा के लिए बुलावा दिया था. ऐसी मुलाकातें न सिर्फ लोकतांत्रिक परंपरा का हिस्सा हैं, बल्कि देश के बेहतर संचालन के लिए जरूरी भी हैं. इस संबंध में राहुल गांधी को पंडित जवाहरलाल नेहरू की समझ पर गौर करना चाहिए. नेहरू ने 31 जनवरी, 1957 को एक भाषण में कहा था कि एक बेहतर विपक्ष के अभाव में सरकारें लापरवाह हो जाती हैं.

उन्होंने कांग्रेस के भीतर भी सरकार की आलोचना के लिए जगह बनायी थी. फिरोज गांधी कांग्रेस से सांसद होने के अलावा पंडित नेहरू के दामाद भी थे, लेकिन लोकसभा में नेहरू की नीतियों की जमकर आलोचना करते थे. पिछले वर्ष नेहरू की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इस तथ्य को रेखांकित किया था कि नेहरू महत्वपूर्ण मामलों पर विपक्षी नेताओं की राय लेते रहते थे.

ऐसा तब था जब कोई मान्यताप्राप्त विपक्षी दल नहीं था. खुद राहुल गांधी ने भी नेहरू की याद में 18 नवंबर, 2014 को आयोजित एक गोष्ठी में कहा था कि नेहरू विपक्ष का भरपूर सम्मान करते थे. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी में यह विशेषता नेहरू से काफी कम थी, फिर भी ये दोनों नेता बतौर प्रधानमंत्री या सत्ता से बाहर रहते हुए भी अन्य दलों के नेताओं से मिलते-जुलते रहते थे. इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का रवैया भी सकारात्मक है. ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद अगर राहुल गांधी दो प्रमुख राजनेताओं की बैठक को इतनी बेपरवाही से विश्लेषित करेंगे, तो यह अत्यंत अफसोस की बात है.

ऐसे बयान से वे न सिर्फ वर्तमान और पूर्व प्रधानमंत्री की मुलाकात को महत्वहीन बना रहे हैं, बल्कि एक परंपरा पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े कर रहे हैं. यह संभव है कि कार्यक्रम में उनकी इस चुटकी पर उनके छात्र संगठन के सदस्यों ने ठहाका लगाया हो, लेकिन इसके संदेश ठीक नहीं हैं.

लगातार हाशिये पर जा रही कांग्रेस को यदि अपनी खोयी जमीन वापस पाना है, तो जरूरी है कि राहुल गांधी और पार्टी के अन्य नेता विपक्ष की अपनी जिम्मेवारियों को गंभीरता से निभाएं.

सचेत और सक्रिय विपक्ष की उपस्थिति लोकतंत्र की सुदृढ़ता के लिए आवश्यक है.

संसद में उल्लेखनीय संख्या बल होने के कारण यह जिम्मेवारी कांग्रेस पर ही है. यदि राहुल गांधी सचमुच मोदी सरकार को ‘सूट-बूट की सरकार’ और उसकी नीतियों को जन-विरोधी मानते हैं, तो उन्हें ध्यान विरोध के मुद्दों पर केंद्रित करना चाहिए, न कि अपनी पार्टी के कुछ बड़बोले नेताओं की राह पर चल कर सुर्खियां बटोरने पर.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें