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दिल्ली को मोदी से डर क्यों है!

।।एमजे अकबर।।(वरिष्ठ पत्रकार) यूरोप या अमेरिका के पुराने भव्य मकानों की छत पर मौसम मापक लगा होता था. यह कतई खूबसूरत नहीं लगता था, लेकिन इसकी महत्ता सौंदर्यबोध के हिसाब से नहीं मापी जाती थी. यह हवा का रुख बताता था. अंगरेजों ने कोलकाता, मद्रास, मुंबई जैसे बड़े औपनिवेशिक नगरों का निर्माण किया, लेकिन इनमें […]

।।एमजे अकबर।।
(वरिष्ठ पत्रकार)

यूरोप या अमेरिका के पुराने भव्य मकानों की छत पर मौसम मापक लगा होता था. यह कतई खूबसूरत नहीं लगता था, लेकिन इसकी महत्ता सौंदर्यबोध के हिसाब से नहीं मापी जाती थी. यह हवा का रुख बताता था. अंगरेजों ने कोलकाता, मद्रास, मुंबई जैसे बड़े औपनिवेशिक नगरों का निर्माण किया, लेकिन इनमें कहीं मौसम मापक नहीं मिलता. इसकी वजह शायद यह रही हो कि भारत में मौसम कमोबेश तय लय में चलता है. दिल्ली, लंदन नहीं है, जहां आप घर से निकलते वक्त पसीना महसूस करें, रास्ते में ठंडी बारिश में फंस जायें और वापस आते-आते आपको जुकाम हो जाये.

मौसम का मिजाज भांपने के लिए दिल्ली के घरों में भले मापक न लगे हों, लेकिन इसकी भरपाई भीतरी सेंसरों से हो जाती है. दिल्ली की चिंता के केंद्र में इंसानी स्वभाव है, न कि मौसम का मिजाज. दिल्ली के उस खास इलाके में जहां शासकों की अलग-अलग जातियों का अस्थायी ठिकाना है, हर कान में एक शक्तिशाली एंटिना लगा है, जिनकी ट्यूनिंग इस तरह की गयी होती है कि वे राजनीतिक हवा के रुख को पकड़ पायें. दिल्ली में बिचौलियों का वर्ग साम्राज्यों के उत्थान-पतन के बावजूद इसलिए बचा रह गया है, क्योंकि वह उगते हुए सूरज को ही नहीं, उसकी संभावना को भी सलाम करता है. पिछले पांच वर्षो में दिल्ली में बहसों का मजमून कैसे बदला, यह गौर करने लायक है.

2009 में दिल्ली में हर कोई यही बात करता था कि कैसे कांग्रेस और इसकी देखरेख करनेवाला गांधी परिवार अगले बीस वर्षो तक देश पर राज करेगा. प्रधानमंत्री बनना राहुल गांधी की इच्छा पर था. इस विचार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उसी साल एक चर्चित प्रेस कांफ्रेंस में दोहराया भी था. वेटिंग रूम में इंतजार करने के राहुल के फैसले की सभी प्रशंसा करते थे. 2010 की सर्दियों के आते-आते हवाओं में भ्रष्टाचार के सवाल पर थोड़ी बेचैनी महसूस की जाने लगी थी, लेकिन फिर भी रात्रि भोजों में राहुल की टीम को सिर आंखों पर बिठाया जाता था, उन्हें अगले राजदरबार के सदस्यों के तौर पर देखा जाता था.

तभी अन्ना हजारे का बाबा रामदेव के साथ पदार्पण हुआ. कुछ सिर हिले, पर बुद्धिमानों ने सबकुछ देख रखा था. लोगों ने कहा, भव्य प्रोसेसन की राह में छोटे-मोटे अवरोध तो आते ही हैं. यह जैसे आया है, वैसे ही गायब भी हो जायेगा. क्या आपने जनता की याददाश्त के बारे में नहीं सुना है! यह छोटी होती है. उनकी बत्तीसी पूरी खुली हुई थी! तब आया 2012 के यूपी चुनावों का झटका देनेवाला नतीजा. पटकथा कुछ इस तरह लिखी गयी थी कि अगर कांग्रेस को 80 सीटें भी मिल जाये, तो इसकी घोषणा जीत के तौर पर की जायेगी. इस जीत के मेहराबदार पथ पर चल कर राहुल प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच जायेंगे. इस हार ने पहली बार शक पैदा किया. उसी साल गुजरात में नरेंद्र मोदी की जीत की हैट्रिक ने परिदृश्य को बदलना शुरू कर दिया. इसके बाद मीडिया में ऐसे सैकड़ों लेख और रिपोर्ट प्रकाशित हुए, जिनमें दावा किया गया कि मोदी को अपने पोस्टर बॉय के तौर पर चुन कर भाजपा अपना ही नुकसान करेगी.

लेकिन भाजपा ने गलियों में रहनेवाले अपने कार्यकर्ताओं की आवाज सुनी, न कि दिल्ली के बाड़ों में रहनेवालों की. अब जबकि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार चुन लिया गया है, उनके पास चिंता करने की एक बड़ी वजह है. अब तक वे सिर्फ अपने समर्थकों से घिरे थे. अब उनके चारों ओर चाटुकारों की फौज होगी. यह उस खेल में खतरनाक साबित हो सकता है, जहां लब और प्याले के फासले में भी बाजी पलट सकती है. दिल्ली मोदी से, उनकी पार्टी के कारण नहीं डरी हुई है. वह डरी हुई है मोदी के आउटसाइडर (बाहरी) होने से. वह डरी है, क्योंकि उनमें अंगरेजी से प्रेरित वह नजाकत नहीं है, जिसकी उम्मीद दिल्ली का अभिजात्य वर्ग अपने भावी शासक से करता है.

मोदी की अंगरेजी इंग्लैंड की महारानी को शायद ही प्रभावित कर पाये. पर, इन सबसे ज्यादा दिल्ली उनकी कठोर छवि से सहमी हुई है. दिल्ली समझौतों में यकीन करती है, जवाबदेही में नहीं. और कोई ऐसे सांड को पसंद नहीं करता, जो दशकों की मेहनत से जमा की गयी संपत्ति को रौंद डाले. दिल्ली का पहले भी बाहरियों से पाला पड़ा है. लेकिन इनमें से अधिकतर अपनी अयोग्यता के कारण दिल्ली को रास ही आये. लालबहादुर शास्त्री एक ऐसे आउटसाइडर थे, जो दिल्ली शहर के समीकरणों को बदल सकते थे, लेकिन उनकी उम्र ज्यादा नहीं थी. शायद, ताशकंत समझौता उन पर दाग भी लगा देता. दिल्ली अपने एक चेहरे से मोदी का विरोध करेगी और सार्वजनिक रूप से उन्हें देख कर मुस्कुरायेगी.

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