Advertisement
कम होती जा रही है मां की जगह
वेलेंटाइन डे पर बाजार में तरह-तरह के ग्रीटिंग कार्ड, फूल इत्यादि सजे रहते हैं. अपने आप पता चलने लगता है कि वेलेंटाइन डे आने वाला है. लेकिन दुर्भाग्य है कि इसी तरह के तामझाम हमें मातृ दिवस पर दिखायी नहीं देते. आजकल लोगों को पत्नी तथा प्रेमिका का ‘स्वार्थपूर्ण’ प्रेम पसंद है, लेकिन मां का […]
वेलेंटाइन डे पर बाजार में तरह-तरह के ग्रीटिंग कार्ड, फूल इत्यादि सजे रहते हैं. अपने आप पता चलने लगता है कि वेलेंटाइन डे आने वाला है. लेकिन दुर्भाग्य है कि इसी तरह के तामझाम हमें मातृ दिवस पर दिखायी नहीं देते. आजकल लोगों को पत्नी तथा प्रेमिका का ‘स्वार्थपूर्ण’ प्रेम पसंद है, लेकिन मां का निस्वार्थ एवं पूर्ण प्यार पसंद नहीं. मां के प्रति हमारी संवेदना कम हो रही है.
हमारी शिक्षा और हमारा समाज मां के महत्व को नहीं समझते. हमारी सोच इतनी ‘विकिसत’ हो गयी है कि हम मां को वृद्धाश्रम पहुंचाने लगे हैं. हम यह नहीं सोचते कि उसी मां ने हमें 9 महीने तक अपनी कोख में रखा है. आजकल टीवी व फिल्मों में मां का किरदार सिर्फ रस्म अदायगी के लिए रहता है. बाकी कहानी प्रेमी-प्रेमिका के इर्द-गिर्द घूमती रहती है. आज मां पर कविता-कहानी नहीं लिखी जा रही है.
प्रताप तिवारी, सारठ
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement