यूं तो हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है. यह हमारी पहचान है. लेकिन यह पहचान धीरे–धीरे समाप्त होती जा रही है. हमें अंगरेजों को चंगुल से स्वतंत्र हुए क ई वर्ष बीत चुके हैं. पर फिर भी हम पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं हुए हैं.
इसका असर हम अपने आसपास देख सकते हैं, जैसे अंगरेजी विद्यालयों का लगातार बढ़ता स्तर जबकि उनके मुकाबले हिंदी विद्यालयों का गिरता स्तर. जिसे देखो अंगरेजी में अपनी पकड़ बनाना चाहता है.
कुछ दिनों पहले की बात है. मेरे यूनीक आइडी में हिंदी से लिखे गये शब्दों में कुछ गलती हो गयी, तो मैं उसे सुधरवाने के लिए डोरंडा नगर निगम के कार्यालय चला गया. वहां यूआइडी बनवानेवाले लोगों की काफी भीड़ थी. मैं बने हुए यूआइडी को देखा, तो उसमें भी वही गलती थी जो मेरे यूआइडी में थी.
कंप्यूटर ऑपरेटर (संचालक) से पूछने पर पता चला कि उस कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में हिंदी भाषा के लिए कोई विकल्प नहीं था. लेकिन आश्चर्य की बात है कि फिर भी लोग यूआइडी बनवा रहे थे. उन्हें क्या मालूम कि हिंदी की इन छोटी सी गलतियों के लिए न जाने कितनी मुसीबतें उनका इंतजार कर रही हैं.
इस तरह से ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनसे हिंदी की उपेक्षा और उसके गिरते स्तर का पता चलता है. यह कहना सरासर बेमानी होगी कि अंगरेजी का प्रयोग न किया जाये, चूंकि कुछ शब्द और पाठय़क्रम ऐसे हैं जो अंगरेजी के बगैर बेमतलब और आधारहीन हो जायेंगे. लेकिन फिर भी हिंदी का सम्मान तो हमें ही करना होगा. इनका प्रयोग भी सही तरीके से किया जाना चाहिए.
इस तरह हो रही गलतियों को नजरअंदाज करते रहे, तो वह समय दूर नहीं जब वर्षो पुराना यह गौरव धीरे–धीरे समाप्त हो जायेगा और हिंदी केवल नाम मात्र के ही राष्ट्रीय भाषा रह जायेगी.
सीताराम तांबा, जगन्नाथपुर, रांची