।।सतीश उपाध्याय।।
(प्रभात खबर, पटना)
अखबार की प्रादेशिक डेस्क पर काम करने पर तरह-तरह के अनुभवों से रू-ब-रू होना पड़ता है. कारण यह कि प्रादेशिक डेस्क में आप राज्य की सबसे छोटी इकाइयों की गतिविधियों से परिचित होते हैं. ऐसे में जाहिर है कि गांव या पंचायत स्तर के कुछ शब्दों से हमें परिचित होने का लाभ मिलता रहता है. लेकिन, वहां नये शब्द गढ़े भी जाते हैं, यह जानना मेरे लिए बिल्कुल नया अनुभव था.
कस्बों के रिपोर्टर खबर लिखने में जी-जान लगा देते हैं. इसमें कई बार वे दोहराव के शिकार हो जाते हैं. एक ही खबर में, उनके जेहन के शब्दकोश में जितने शब्द होंगे, वह सभी प्रयोग कर डालते हैं. ऐसे ही कुछ अनुभवों से मैं आपको परिचित कराना चाहूंगा. एक दिन मैं जिले का पेज देख रहा था, तभी एक रिपोर्टर ने फोन किया, सर आज मेरे पास एक ‘हार्ड न्यूज’ है. डेस्क प्रभारी होने के नाते मैं काफी खुश हुआ.
चलो आज पहले पन्ने के लिए कुछ तो मिला. मैंने उस रिपोर्टर से खबर के बारे में पूछा? रिपोर्टर ने कहा सर गांव की महिलाओं ने एक शराब व्यवसायी को पीट दिया, साथ ही शराब की दुकान में जम कर तोड़-फोड़ की. मैंने कहा, इसमें नया क्या है? उसने कहा सर, इसमें नया यह है कि दुकान तोड़नेवाली ‘एक्स विधवा’ महिलाएं हैं. मैंने एक्स गर्लफ्रेंड, एक्स वाइफ के बारे में सुना था, लेकिन यह एक्स विधवा क्या है? मैं अपनी हंसी रोक न पाया. साथी मित्रों से इसकी चर्चा की. न्यूज रूम में सुन कर सभी हंस पड़े. तभी एक मित्र ने गंभीरता दिखाते हुए कहा, अरे यार इस शब्द का अर्थ यह हो सकता है कि विधवा की अब शादी हो गयी हो. इसलिए उसे ‘एक्स विधवा’ कहा जा रहा होगा. एक बार फिर सभी हंस पड़े.
फिर मैंने रिपोर्टर से जानना चाहा कि आखिर वह इसकी व्याख्या कैसे करते हैं? मैंने उन्हें फोन लगाया, रिपोर्टर ने बड़े विस्तार से इसके बारे में बताया. उन्होंने कहा, ‘‘सर, तोड़-फोड़ करनेवालों में कुछ महिलाएं विधवा थीं. इनमें एक महिला की पहली शादी जिस आदमी से हुई थी, वह शराब पीते-पीते मर गया. जिस कारण उसे तीन वर्षो तक विधवा की जिंदगी गुजारनी पड़ी. अब एक बार फिर वही अतीत उसके सामने आ रहा है. इसके दूसरे पति ने भी शराब पीना शुरू कर दिया है. इससे परेशान महिला ने गांव की कुछ महिलाओं को इकट्ठा कर इस घटना को अंजाम दिया.’’
उसकी बातों से मैं संतुष्ट हुआ. लेकिन उसके द्वारा भेजे गये ‘एक्स विधवा’ शब्द का प्रयोग मैं नहीं कर सकता था? वैसे शब्दों को गढ़ना भी एक कला है. कुछ शब्द तो सदियों से चलते आ रहे हैं. लेकिन कुछ शब्द गढ़ लिये जाते हैं. राजनीति में धड़ल्ले से नये शब्द गढ़े जा रहे हैं. खास कर एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के लिए. कुछ तो इतने हल्के होते हैं, जिन्हें आम लोग भी बोलचाल में इस्तेमाल नहीं करते. खैर, राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि स्थानीय स्तर पर भी लोग शब्दों को गढ़ने में माहिर होते जा रहे हैं.