बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि, बाढ़, सूखा, आंधी-तूफान, सरकार एवं समाज की उपेक्षा तथा असहयोग वगैरह वगैरह, न जाने कितनी ऐसी भयावह परिस्थितियां हैं, जिनकी चक्की में पिस कर हमारे देश के किसान अपनी जिंदगी की आखिरी सांसें गिन रहे हैं. पिछले कुछ वर्षो में बेतहाशा कर्ज और फसलों की बर्बादी से हताश एवं निराश देश के किसानों की आत्महत्या के अनगिनत मामले सामने आये हैं.
विडंबना देखिए कि हमारे देश एवं समाज के बीच अन्नदाता कहलानेवाले किसानों पर ही निर्धनता एवं लाचारी की तमाम मुसीबतें एक साथ टूट पड़ी हैं. यही कारण है कि देश की रचना में रीढ़ की हड्डी समङो जानेवाले किसान समुदाय के लोग आज भी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाने में असमर्थ हैं. यह सही है कि हमारे देश के किसानों की स्थिति दिनानुदिन दयनीय बन रही है. सभी जानते हैं कि किसान समुदाय उत्थान के प्रति हमारी सरकार ने उपेक्षापूर्ण नीति का अनुसरण किया है.
यही नहीं, आज हमारा समाज भी किसानों की स्थिति में बेहतरी के लिए कोई सार्थक पहल नहीं करता दिख रहा है. नतीजा यह हुआ कि देश के किसान असमय अपनी जीवनलीला का अंत कर रहे हैं और हम सब तमाशबीन बन कर उनसे झूठी हमदर्दी जता रहे हैं. ऐसे मुश्किल हालात में हमारे किसानों को अदम्य साहस एवं धैर्य का परिचय देना होगा. उन्हें अपने अनुकूल वातारण तैयार करने के लिए स्वयं कमर कसना होगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारी सरकार किसानों के हित से जुड़ी तमाम बातों को क्रियात्मक स्तर पर लागू करने में ठोस कदम उठायेगी. आज स्थिति यह है कि देश के किसानों का सब्र का बांध टूट गया है और वे लाचार और बेबस हो गये हैं.
नीरज कुमार निराला, मुजफ्फरपुर