।। बदहाली के कसूरवार कौन?।।
भारतीय अर्थव्यवस्था का गहराता संकट किसी से छिपा नहीं है. हालात ऐसे हैं कि देश के वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा को यह कहना पड़ा है कि अगर भारत अपने 31,000 टन सोने के भंडार में से 500 टन सोना भी गिरवी रख दे, तो मौजूदा संकट से पार पाया जा सकता है. जाहिर है, जिन्हें यह मालूम है कि 1991 के आर्थिक संकट के दौरान सोना गिरवी रखने की मजबूरी भारतीय मानस में राष्ट्रीय शर्म के एहसास के तौर पर दर्ज है, वे वाणिज्य मंत्री के इस बयान की गंभीरता को समझ रहे होंगे.
हालात कितने नाजुक हैं, इसका एक प्रमाण बुधवार को एक बार फिर मिला जब अबाध फिसलन की डगर पर चलते हुए भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 69 के करीब आ गिरा. हालांकि, देश के वित्त मंत्री बार-बार स्थिति नियंत्रण में होने की बात कह रहे हैं, लेकिन डॉलर के मुकाबले रोज पिटता रुपया और धड़ाम होता सेंसेक्स उनकी बातों पर यकीन करने की कोई ठोस वजह नहीं देता है. यह एक विचित्र संयोग है कि ऐसे हालात उस सरकार के कार्यकाल के दौरान बने हैं, जिसके मुखिया भारत में आर्थिक सुधारों के जनक डॉ मनमोहन सिंह हैं. रुपये के मूल्य में गिरावट यूपीए सरकार की एक बड़ी नाकामी की ओर ध्यान दिला रही है. कहते हैं, उस मोरचे पर हार सबसे ज्यादा दुख देती है, जहां हम खुद को सबसे मजबूत मानते हैं.
आर्थिक प्रबंधन को यूपीए सरकार का ऐसा ही अभेद्य दुर्ग माना गया था. यूपीए सरकार की कमान खुद मनमोहन सिंह के हाथों में थी और तीन वर्ष की अवधि को छोड़ कर बाकी समय में वित्त मंत्री पी चिदंबरम रहे हैं, जिनके खाते में 1996 का ‘ड्रीम बजट’ दर्ज है. इस ‘ड्रीम टीम’ के सहारे देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने का सपना आज बिखर गया सा मालूम होता है. हालांकि, किसी संकट के लिए एक या दो लोग ही दोषी नहीं होते, लेकिन जानकारों का मानना है कि अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात के लिए यूपीए सरकार की आर्थिक बदइंतजामी, नीतिगत जड़ता, पर्वताकार भ्रष्टाचार और वोट के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोल देने की नीति कसूरवार है.और इसकी जिम्मेवारी और किसी पर नहीं, मनमोहन-चिदंबरम पर ही आती है.
अर्थव्यवस्था को संभाल पाने में यह नाकामी इसलिए ज्यादा गौर करने लायक है, क्योंकि जब यूपीए सरकार सत्ता में आयी थी, उस समय देश आर्थिक तरक्की के पथ पर दौड़ रहा था. मनमोहन-चिदंबरम की टीम से आसमान को छूने की आस लगायी गयी थी, लेकिन अर्थव्यवस्था का मौजूदा दौर दु:स्वप्न का एहसास करा रहा है. अपने आप में यह किसी ऐतिहासिक विडंबना से कम नहीं है.