सुख के रसगुल्ले तो सभी खाते हैं, पर बिहार में दुख की जलेबी भी खायी जाती है. यह दाह संस्कार के बाद श्मशान घाट पर खायी जाती है. हम झूठ की मिठाई खाने के भी आदी रहे हैं. भोज की दूसरी सुबह जब गरीब बच्चे भोजन मांगने आते हैं, तो बासी पूरी-सब्जी के बाद मिठाई मांगने पर घर के बड़े अक्सर कहते हैं, मिठाई अब कहां बा. जा लोग. उधर, आंगन में कालेजामुन परोसे जाते हैं. यहां भेदभाव की मिठाई भी मिलती है. पूजा से पहले ही घर में दो तरह के ठेकुए बनते हैं. एक घी में, जो खास लोगों के लिए होते हैं और दूसरा रिफाइंड तेल में, जो अन्य के लिए होते हैं. धाम से प्रसाद के तौर पर दो तरह के पेड़े खरीदना भी आम है. हाल में मैंने पहली बार अफसोस की मिठाई खायी. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यह अन्य सभी मिठाइयों से बेहतर थी. मेरे एक मित्र हैं सोलंकी. जितना प्रेम भगवान का प्रसाद देनेवालों में झलकता है, उससे कहीं अधिक प्रेम भाव से उन्होंने मिठाई दी.
खाने से पहले पूछना जरूरी था कि मिठाई किस बात की है, ताकि उसके अनुसार बधाई या दुख जता सकूं. उन्होंने जो बताया, उससे मैं चौंक पड़ा. दरअसल यह मिठाई शादी की वार्ता टूटने के अवसर की थी. सोलंकी के छोटे भाई की शादी के लिए लड़की देखा-देखी व वार्ता महीनों से चल रही थी. इस दौरान दोनों पक्षों के अच्छे-खासे रुपये भी खर्च हुए. गिफ्ट और गोड़छुआई में. लड़की दिल्ली में जॉब करती है और लड़का पटना में.
लड़की का कहना था कि शादी के बाद वह जॉब नहीं छोड़ेगी. बस इसी बात पर वार्ता टूट गयी. वार्ता टूटने पर पहले जहां लड़का पक्ष केवल लड़की में दोष गिनाता था, अब वह उसके विचार को सम्मानपूर्वक स्वीकार कर रहा है, क्योंकि उसके घर की बेटी भी जॉब करना चाहती है. यह बिहारी समाज में आ रहा बड़ा बदलाव है. मिठाई खाते मैं दिल्लीवाली उस लड़की के बारे में सोच रहा था, जिसने प्रिंस्टन में विदेशी मामलों की प्रोफेसर व हिलेरी क्लिंटन के कार्यकाल में पॉलिसी प्लानिंग के निदेशक पद से बच्चे की पढ़ाई व देखभाल के लिए पद से इस्तीफा देनेवाली एन मैरी स्लाउटर को खारिज कर दिया था.
भले ही स्लाउटर के ‘महिलाएं सब कुछ नहीं पा सकतीं’ को दो लाख से ज्यादा लोगों ने फेसबुक पर शेयर किया हो ओर उच्चपदस्थ अभिजात्य महिलाओं ने कैरियर या परिवार की बहस में परिवार को तवज्जो देते हुए समाज व कार्यस्थलों में ढांचागत सुधार तक इंतजार करना तय किया हो, पर दिल्ली में रहनेवाली बिहारी लड़की ने शादी से इनकार करके बता दिया कि वह सबकुछ ठीक होने तक पंख समेटे नहीं रह सकती. वह स्लाउटर के उस कथन से भी असहमत है कि बदलाव के लिए पुरुषों का आंदोलन जरूरी है. हां, वह लड़के पक्ष के लोगों को उसका सम्मान करने के लिए थैंक्यू जरूर बोल रही है.
कुमार अनिल
प्रभात खबर, पटना
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