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संकट की घड़ी में सराहनीय प्रयास

भीषण गृहयुद्ध ङोल रहे देश यमन से भारत चंद दिनों में ही तीन हजार से अधिक आप्रवासी भारतीयों को सुरक्षित निकाल लाने में सफल हुआ है. यह सफलता जहां वायुसेना, नौसेना और एयर इंडिया के तालमेल, केंद्र सरकार की कूटनीतिक समझदारी और दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचायक है, वहीं भारत की वसुधैव कुटुंबकम की भावना […]

भीषण गृहयुद्ध ङोल रहे देश यमन से भारत चंद दिनों में ही तीन हजार से अधिक आप्रवासी भारतीयों को सुरक्षित निकाल लाने में सफल हुआ है. यह सफलता जहां वायुसेना, नौसेना और एयर इंडिया के तालमेल, केंद्र सरकार की कूटनीतिक समझदारी और दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचायक है, वहीं भारत की वसुधैव कुटुंबकम की भावना का प्रतीक भी, क्योंकि भारत ने पाकिस्तान सहित 17 देशों के नागरिकों को यमन से निकालने में योगदान दिया है.
यमन के कई इलाकों में जहां सऊदी अरब के बमवर्षक विमान आग बरसा रहे हैं, वहीं जमीन पर सरकार विरोधी शिया विद्रोहियों की मशीनगनें गरज रही हैं. यमनी सेना की सक्रियता स्थिति को भयावह बना रही है, क्योंकि निष्ठा के मामले में वह सरकार व विद्रोहियों के बीच बंटी हुई है. ऐसी विकट परिस्थिति में भारतीय सेना ने इतनी बड़ी तादाद में नागरिकों को सुरक्षित निकाल कर साबित किया है कि कठिन घड़ी में उसका कौशल ज्यादा निखार पर होता है. यह हमारी सेना की क्षमता और सरकार के कूटनीतिक कौशल का ही परिणाम है कि बीस से ज्यादा देशों ने अपने नागरिकों को यमन से निकालने में मदद मांगी है.
हालांकि, इस सराहनीय ऑपरेशन के बीच कुछ महत्वपूर्ण बातों को नजरअंदाज करना उचित नहीं होगा. हर बार सरकार संकटग्रस्त क्षेत्रों से आप्रवासी भारतीयों को निकालने के प्रयास तब करती है, जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगता है. भारत को 2011 में लीबिया से 17 हजार नागरिकों को निकालने की जिम्मेवारी उठानी पड़ी थी और केंद्र की नयी सरकार को यमन से पहले इराक और यूक्रेन से भी भारतीय नागरिकों को निकालने के प्रयास करने पड़े हैं. सरकार ने जैसी तत्परता यमन के मामले में दिखाई है, पहले नहीं दिखी थी. असल में, हमारी विदेश-नीति में आप्रवासियों का मुद्दा चीन की तरह सामरिक मुद्दे के रूप में स्वीकृत नहीं है.
यह भी ध्यान देने योग्य है कि सरकारी चेतावनियों के बावजूद कुछ संकटग्रस्त देशों में काम करने गये भारतीय समय रहते नहीं लौटते. आप्रवासियों के उत्पीड़न, बंधक रखने और पासपोर्ट आदि छीन लेने की खबरें अक्सर आती हैं. ऐसे में अपने नागरिकों के लिए विदेशों में गरिमापूर्वक जीवनयापन के योग्य परिस्थितियां सुनिश्चित करने के बारे में भी सरकार को सोचना चाहिए.

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