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स्कूलों की मनमानी पर ध्यान दें

वार्षिक परीक्षा समाप्त होते ही निजी स्कूलों द्वारा अभिभावकों पर दोबारा नामांकन कराने और नयी किताबें खरीदने का दबाव बनाना उचित नहीं है. आज के शिक्षण संस्थान बच्चों को शिक्षित बनाने के नाम पर शिक्षा का व्यापार चला रहे हैं. राज्य के निजी स्कूलों के परिसरों में ही किताब-कॉपियों की दुकान लगा कर अभिभावकों से […]

वार्षिक परीक्षा समाप्त होते ही निजी स्कूलों द्वारा अभिभावकों पर दोबारा नामांकन कराने और नयी किताबें खरीदने का दबाव बनाना उचित नहीं है. आज के शिक्षण संस्थान बच्चों को शिक्षित बनाने के नाम पर शिक्षा का व्यापार चला रहे हैं. राज्य के निजी स्कूलों के परिसरों में ही किताब-कॉपियों की दुकान लगा कर अभिभावकों से इनकी खरीद करने को कहा जा रहा है.

हालांकि, ऐसा करना शिक्षा अधिकार नियमों के खिलाफ है. फिर निजी स्कूल नियमों को ताक पर रख कर व्यापार चला रहे हैं. कुछ स्कूल तो अभिभावकों को किताब-कॉपी खरीदने के लिए दुकान का अता-पता देकर भेज रहे हैं. दूसरी दुकान से किताबों की खरीद करने पर उसे माना नहीं जा रहा है. आर्थिक तंगी से जूझ रहे अभिभावकों के लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं है. अत: सरकार स्कूलों की मनमानी पर ध्यान दे.

प्रताप तिवारी, सारठ, देवघर

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