आज भारतीय अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है. पिछले वर्ष से ही औद्योगिक विकास दर घटती जा रही है और महंगाई ऊंचे स्तर पर बनी हुई है. यूरोजोन संकट और वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती भारत के लिए भी नकारात्मक प्रभाव लाये हैं. जी-20 के तकरीबन सभी देशों में खासी सुस्ती दिख रही है.
औद्योगिक उत्पादन में गिरावट, डॉलर की तुलना में रुपये की स्थिति में लगातार कमजोरी, महंगाई पर काबू न होना और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से कोई अच्छी खबर न आना, आर्थिक वृद्घि दर की कमी के लिए उत्तरदायी कारण हैं. चाहे हम अमेरिकी संकट या यूरोपीय संकट को भारत की बिगड़ती अर्थव्यवस्था के लिए जिम्मेवार ठहरायें, लेकिन एक बात सच है कि देश के आर्थिक प्रदर्शन पर छाये बादल घने होते जा रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार के पास इस चुनौती से निबटने के लिए कोई कार्यक्रम नहीं दिख रहा. भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है, अत: सेवा निर्यात पर अधिक ध्यान देना चाहिए. इसके लिए ट्रेड ब्लॉक्स के साथ समझौता करना चाहिए. जिस हिसाब से व्यापार का अंतरराष्ट्रीय माहौल बन रहा है, उसे देखते हुए भारत का व्यापार घाटा बहुत है. घाटा बढ़ने के कारण रुपये पर दबाव बन रहा है, जिससे उसकी कीमत लगातार गिरती जा रही है.
देश में भंडारण का उचित प्रबंध नहीं होने के कारण लाखों टन अनाज बरबाद हो गया. आज बाजार में आटा 20 रुपये प्रति किलोग्राम मिलता है. सरकार चाहती तो भंडारण का इंतजाम करने से लेकर मंडी कानून में बदलाव कर पूरे देश में गेहूं की सप्लाई चेन व्यवस्थित कर सकती थी. पर यह नहीं हुआ. देश की जीडीपी में 15} और रोजगार में 53} का योगदान देनेवाले कृषि क्षेत्र पर भी ध्यान देने की जरूरत है.
(अजय कुमार मिश्रत्नहिनू, रांची)