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गलत नीतियों का खमियाजा
डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री चीन द्वारा सस्ते माल के निर्यात से प्राप्त सफलता को मोदी दोहराना चाहते हैं. मेक इन चाइना पॉलिसी चीन को गड्ढे में ले जा रही है. उसी गड्ढे में नरेंद्र मोदी भारत को ले जाना चाहते हैं. यदि चीन के निर्यातों के लिए विकसित देशों में मांग उत्पन्न नहीं हो रही […]
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
चीन द्वारा सस्ते माल के निर्यात से प्राप्त सफलता को मोदी दोहराना चाहते हैं. मेक इन चाइना पॉलिसी चीन को गड्ढे में ले जा रही है. उसी गड्ढे में नरेंद्र मोदी भारत को ले जाना चाहते हैं. यदि चीन के निर्यातों के लिए विकसित देशों में मांग उत्पन्न नहीं हो रही है, तो भारत के निर्यातों के लिए कैसे होगी?
चौतरफा पॉजिटिव सेंटीमेंट के बावजूद आर्थिक विकास शिथिल पड़ा हुआ है. अकसर किसानों को अपनी फसल को खेत में ही बरबाद करना पड़ता है. आलू खोद कर बाजार तक पहुंचाने का खर्च भी वसूल नहीं होता है. जैसे इस समय आलू की पैदावार अधिक हुई है.
बाजार में दस रुपये किलो तक आलू उपलब्ध है. आज किसानों को बमुश्किल 3-4 रुपये मिल रहा होगा. ऐसे में किसान आलू के उत्पादन में निवेश नहीं करता है. कितना भी पॉजिटिव सेन्टिमेंट हो, सरकार सड़क बना दे, मंडी में दाम की जानकारी देने को इ-चौपाल लगा दे, कोल्ड स्टोरेज बनाने अथवा ट्रैक्टर खरीदने को लोन दे, यह सब बेकार हो जाता है यदि बाजार में आलू की मांग नहीं है.
ऐसी ही स्थिति हमारी अर्थव्यवस्था की है. मोदी सरकार पर चीन का जादू ऐसा प्रभावी है कि अनायास चीन के पीछे हम भी गड्ढे में जा रहे हैं. पश्चिमी देशों को माल सप्लाई करने को चीन प्रयासरत है, परंतु वहां मांग है ही नहीं. भ्रष्टाचार उन्मूलन भी सहायक नहीं है. बाजार में मांग हो और उद्यमी निवेश करना चाहता हो, तो भ्रष्टाचार पर रोक लाभप्रद होता है.
कंपनियों को स्वीकृतियों के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने होते. मंत्रियों को सूटकेस पहुंचाने के स्थान पर वे रकम से उद्योग लगाते हैं. परंतु मंदी के समय भ्रष्टाचार का प्रभाव बिल्कुल उल्टा पड़ता है. मंदी के समय उद्यमी निवेश नहीं करना चाहता. ऐसे में भ्रष्टाचार की रकम से बाजार में मांग उत्पन्न होती है. चीन की विकास दर में पिछले कई वर्षो से गिरावट जारी है. इसके लिए चीनी राष्ट्रपति का ‘भ्रष्टाचार उन्मूलन आंदोलन’ जिम्मेवार है. चीन की विकास दर 10-12 प्रतिशत रहा करती थी, जो कि अगले वर्ष 6 प्रतिशत के करीब रहने का अनुमान है. चार प्रतिशत की भारी गिरावट में भ्रष्टाचार उन्मूलन का योगदान सूक्ष्म है.
विकास दर में गिरावट का असल कारण आर्थिक नीतियां होती हैं. चीन ने विकसित देशों को सस्ते माल का निर्यात की नीति अपनायी है. चीन के सस्ते निर्यातों के सामने अमेरिका और यूरोप की फैक्ट्रियां बंद हो गयीं.
वहां के लोग बेरोजगार हो गये. जनता के पास चीन का सस्ता माल खरीदने को क्रयशक्ति नहीं रही. चीन से इन्होंने माल का आयात कम किया, फलस्वरूप चीन के निर्यात दबाव में आ गये और विकास दर में गिरावट आने लगी. यहां वर्तमान में अमेरिका में विकास दर में आ रही मामूली तेजी से भ्रमित नहीं होना चाहिए. महामारी पहले कमजोर को दबोचती है. मंदी ने पहले ग्रीस, आयरलैंड और पुर्तगाल को दबोचा. अब अगले चरण में इन देशों की मंदी के अमेरिका में फैलने की संभावना है.
चीन की स्थानीय सरकारों को उद्यमियों द्वारा नयी फैक्ट्रियां लगाये जाने की आशा थी. इन्होंने भारी मात्र में ऋण लेकर पार्क, हाइवे, एयरपोर्ट आदि बनाये. इन्हें बनाने में स्टील और सीमेंट की मांग बन रही थी. यह चीन के विकास का दूसरा इंजन था. परंतु नयी फैक्ट्रियों के नहीं लगने से यह निवेश भारी पड़ने लगा है. स्थानीय सरकारों के लिए ऋण की अदायगी कठिन हो गया है. यह विकास दर गिरने का दूसरा कारण है.
हमारी स्थिति भी ऐसी ही है. विकास दर ठहरी हुई है. दिल्ली के एक प्रॉपर्टी डीलर ने बताया कि नयी सरकार के आने के बाद प्रॉपर्टी में काला धन आना कम हो गया है, जिससे दाम गिर रहे हैं. मोदी का फोकस मेक इन इंडिया पर है. वे चाहते हैं कि उद्यमी निवेश करें. मेक इन इंडिया योजना के अंतर्गत वे विदेशी निवेश को भी आकर्षित करना चाहते हैं. सेंटिमेंट पॉजिटिव है. सरकार तथा अधिकारी निर्णय ले रहे हैं. भ्रष्टाचार भी कम हुआ है, परंतु निवेश फिर भी शिथिल है. कारण, बाजार में मांग नहीं है. अगर किसान आलू सड़क पर डाल रहे हों, तो अच्छी सड़क और मोबाइल सेवा से बना पॉजिटिव सेंटिमेंट किस काम का?
चीन द्वारा सस्ते माल के निर्यात से हासिल की गयी सफलता को मोदी दोहराना चाहते हैं. मेक इन चाइना पॉलिसी चीन को गड्ढे में ले जा रही है. उसी गड्ढे में नरेंद्र मोदी भारत को ले जाना चाहते हैं. यदि चीन के निर्यातों के लिए विकसित देशों में मांग उत्पन्न नहीं हो रही है, तो भारत के निर्यातों के लिए कैसे उत्पन्न होगी?
बताया जाता है कि मोदी कैबिनेट के कई मंत्रियों के वाणिज्यिक कंपनियों से गहरे संबंध हैं. जिस प्रकार चीन की सरकार ने शीर्ष अधिकारियों के व्यक्तिगत हितों को साधने के चक्कर में चीन गड्ढे में जा रहा है, उसी तरह ये कैबिनेट मंत्री भारत को गड्ढे में ले जाने को उतारू हैं.
अत: मोदी को कैबिनेट से उन मंत्रियों को निष्काशित करना चाहिए, जो वाणिज्यिक तारों से बंधे हुए हैं. अपनी मूल आर्थिक नीतियों को ठीक करना चाहिए. देश के आम आदमी की आय में वृद्धि करने की योजना बनानी चाहिए. बाजार में मांग होगी, तो उद्यमी स्वयं ही निवेश करेगा. अपने सीमित प्राकृतिक संसाधनों को पश्चिमी देशों को निर्यात करने के स्थान पर अपनी गरीब जनता को इस माल को मुहैया कराना चाहिए.
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