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नकद और साख के बीच मीडिया

।। एम जे अकबर ।। (वरिष्ठ पत्रकार) – मीडिया घराना तभी असफल होता है जब वह साख और नकद प्रवाह दोनों की महत्ता को भूल जाता है. इस मौलिक नियम को भूल जानेवाली भारतीय मीडिया कंपनियों की लंबी सूची है और बढ़ रही है. परदे के पीछे बड़े नाम बिखर रहे हैं. इस खात्मे को […]

।। एम जे अकबर ।।

(वरिष्ठ पत्रकार)

– मीडिया घराना तभी असफल होता है जब वह साख और नकद प्रवाह दोनों की महत्ता को भूल जाता है. इस मौलिक नियम को भूल जानेवाली भारतीय मीडिया कंपनियों की लंबी सूची है और बढ़ रही है. परदे के पीछे बड़े नाम बिखर रहे हैं. इस खात्मे को छिपाने के लिए प्लास्टर चढ़ाने की कीमत शेयरों और नियंत्रण का समर्पण है, हम तब तक सही बात नहीं जान सकते जब तक अंत जाये.

समाचार पत्रों के मालिक अमीर लोग होते हैं. वे ही उन्हें प्रकाशित करते हैं. अमीरों की बिरादरी एक होती है. हां, उनके बीच कठिन प्रतियोगिता होती है. प्रसार और खबर के लिए. एक्सक्लूसिव स्टोरी के लिए. लेकिन, सिर्फ तब तक, जब तक कि इससे मालिक की इज्जत को कोई नुकसान पहुंचे. यह किसी किताब का उद्धरण नहीं है. लेकिन, यह इस ओर इशारा करता है कि किस्सेकहानियां ही सच का आसरा हैं. इसके लेखक आधुनिक काल्पनिक कहानियों के मास्टर रेमंड शैंडलर हैं, जिन्होंने फटेहाल और तेजतर्रार जासूस फिलिप मारलोव को रचा.

मारलोव और शैंडलर ने 20 वीं सदी के लॉस एंजिलिस में अपराध और धन पर पसरे अपराध के बीच जीवन गुजारा. वे जानते थे कि अधिक बात करने से लाभ घटता है और कीमत ऊंची हो जाती है. मारलोव काफी बात करता था, लेकिन वह इससे भी अधिक खतरनाक काम करता था. वह सच बोलता था.

उसके समय में समाचार पत्र अमीरों को राजनीतिक प्रभाव और प्रचार पर एकाधिकार के खतरनाक संयोग से और अमीर बना देते थे. 1930 में ब्रिटेन के एक प्रधानमंत्री ने समाचार पत्रों पर आरोप लगाया था कि वे वेश्याओं की तरह विशेषाधिकार हासिल कर बिना किसी जवाबदेही के सत्ता का प्रयोग करते हैं. यह कथन अपने फायदे के लिए था. मीडिया पूंजीपति दूर से भी सलाह दे सकते हैं, लेकिन उन्हें शयन कक्ष तक प्रधानमंत्री ही ले जाते हैं.

जैसा भी हो, पैसा हमेशा मीडिया के जरिये सत्ता का पीछा करता रहा है और सभी लोकतंत्र ने ऐसा मौका मुहैया कराया है. परिवर्तन किसी भी उद्योग को अस्थिर करता है और ऐसा समाचार पत्रों के साथ हो रहा है. कम से कम कुछ धनवान गरीब हो रहे हैं और इसकी वजह उनके मालिकाना हकवाले समाचार पत्र हैं. ग्राहम परिवार का अमेजॉन के मालिक जेफ बेजोस को वाशिंगटन पोस्ट बेचना इसकी सबसे नाटकीय मिसाल है. यह हस्तांतरण समाचारों के व्यापार से बाहर होने की ओर इशारा नहीं कर रहा. हां यह अखबारों के लिए यह सोचना सही हो सकता है.

बेजोस के लिए वाशिंगटन पोस्ट की खरीद खुदरा खर्च के समान है. लेकिन सूचना के व्यापार ने ही उन्हें गरीब से अमीर बनाया है. समाचार पत्रों को नया रूप दिया जायेगा. ऐसा समयसमय पर होना भी चाहिए. लेकिन इससे सूचना के वाहक की जरूरत समाप्त नहीं हो जाती.

अखबार एक दो ड्राइवर वाले कार की तरह है. मालिक संपादकीय क्षेत्र में प्रकाशक के तौर पर दाखिल हो जाता है. संपादक स्वतंत्रता के नाम पर राहत महसूस करते हैं. ऐसे शक्तिशाली व्यक्तित्व वाले लोग कभीकभार ही दिखाई देते हैं, जो शेयरधारकों की कीमत पर न्यूजरूम पर हावी रहते हैं. यह अपवाद ही होता है.

संपादकीय फैसले सामूहिक होते हैं. वाशिंगटन पोस्ट वाटरगेट खुलासेके नाम से जानी गयी खबरों की श्रृंखला छापने के कारण मीडिया के इतिहास में अमर हो गया. इसने अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन की कुर्सी छीन ली. लेकिन इसे छापने का फैसला संपादक बेन ब्रैडली से अधिक उसके मालिक कैथरीन ग्राहम का था. बेजोस समझदार इंसान हैं. उन्होंने मैनेजिंग एडिटर के तौर पर वाटरगेट के हीरो रहे बॉब बुडवर्ड को नियुक्त किया है. मीडिया की महत्ता मालिकाना हक से नहीं बल्कि साख से निर्धारित होती है. बिना साख के समाचार पत्र बेकार की चीज है. यह साख ही है, जो पत्रकारों को प्रकाशकों के लिए अपरिहार्य बना देती है.

क्या प्रकाशक भी पत्रकार के लिए अपरिहार्य हैं? हां. पत्रकार हर चीज जानते हों, लेकिन एक बात नहीं जानते कि व्यापार कैसे किया जाता है? समाचार पत्र उद्योग भी एक उद्योग है. यह कोई संयोग नहीं है कि भारत के नयेपुराने मीडिया घराने मुनाफे को तरजीह देते हैं. वे जानते हैं समाचार पत्र या टेलीविजन चैनल बिना मजबूत वित्तीय स्थिति के किसी सरकार के खिलाफ टिक नहीं सकते है. यह बात पत्रकारों को भी समझनी चाहिए.

मीडिया घराना तभी असफल होता है जब वह साख और नकद प्रवाह दोनों की महत्ता को भूल जाता है. इस मौलिक नियम को भूल जानेवाली भारतीय मीडिया कंपनियों की लंबी सूची है और बढ़ रही है. परदे के पीछे बड़े नाम बिखर रहे हैं. इस खात्मे को छिपाने के लिए प्लास्टर चढ़ाने की कीमत शेयरों और नियंत्रण का समर्पण है, हम तब तक सही बात नहीं जान सकते जब तक अंत जाये. फिर अचानक बिना कड़वाहट के सबकुछ हो जाता है, जैसा कि वाशिंगटन पोस्ट के मामले में हुआ.

लेकिन मीडिया बचा रहेगा, चाहे वह अमेरिका में हो या भारत में. तब भी जब मालिक नहीं बचें. सूचनामहामार्ग पर बिखरे सभी चीजों का संकलन नहीं है. इनके बीच से जो चुना जाता है, वह प्रासंगिक है.

निस्संदेह निजी रुचियां होती हैं जैसा कि रेमंड शैंडलर ने अपने अंदाज में लिखा था. लेकिन अमीर से अमीर भी समाचार पत्र रूपी छुरी को पकड़ कर नहीं रख सकते, अगर वे यह नहीं समङों कि उनकी व्यक्तिगत रुचि से उत्पाद की साख पर कभी खरोंच भले जाये, उन्हें इसे कभी तबाह नहीं करना चाहिए. एक अच्छा समाचार पत्र का मालिक सोने का अंडे देनेवाली मुर्गी को पालता है, उसे आखिरी खाने के मेन्यू में नहीं रखता.

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