।। अनुज कुमार सिन्हा ।।
प्रभात खबर आज (14 अगस्त) अपनी स्थापना के 29 वर्ष पूरे कर 30वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. 1984 में जब रांची से प्रभात खबर का प्रकाशन प्रारंभ हुआ था, यह शहर छोटा था. आबादी कम थी. स्थितियां अलग थीं. अलग झारखंड राज्य का मुद्दा सबसे बड़ा था.
अब तो राज्य बन चुका है. इन 29 वर्षो में प्रभात खबर इस छोटे से शहर से निकल कर बिहार और बंगाल पहुंच गया है. अपनी पहचान बना चुका है. देश के शीर्ष 10 हिंदी अखबारों में शामिल हो चुका है. इस दौरान देश की पत्रकारिता में बड़े-बड़े बदलाव हुए. अनेक बड़े या फिर जमे हुए अखबार बंद हो गये. टेलीविजन की पत्रकारिता सामने आयी. कई बड़े अखबार झारखंड आये. प्रभात खबर अपनी जगह न सिर्फ जमा रहा बल्कि तेजी से मजबूत भी होता गया. वजह रही भिन्न किस्म की पत्रकारिता. जन मुद्दों की पत्रकारिता. समाज को दिशा देनेवाली और इसे मजबूत करनेवाली पत्रकारिता. बच्चों/परिवार को मजबूत करनेवाली पत्रकारिता.

देश-दुनिया में हो रहे बदलाव से अवगत करानेवाली पत्रकारिता. गांवों-जंगलों में रहनेवाले गरीबों की आवाज बनने से प्रभात खबर कभी नहीं हिचका. जब भी कहीं राज्य के हित का मुद्दा आया, लोगों के साथ हो रहे अन्याय का मुद्दा सामने आया, प्रभात खबर चुप नहीं बैठा. बंटवारे के पहले जब ऐसा लगा कि इस क्षेत्र के साथ अन्याय हो रहा है तो प्रभात खबर आंदोलनकारियों के साथ खड़ा रहा. अलग झारखंड के साथ खड़ा रहा. राज्य बनने के बाद जब इस नये राज्य के नीति निर्माता भटकने लगे, राजनीतिज्ञों-अधिकारियों ने काम नहीं किया, गलतियां पर गलतियां कीं, प्रभात खबर निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता के जरिये राह दिखाता रहा.
राज्य के ज्वलंत मुद्दों पर बहस करायी. चाहे वह कानून एवं व्यवस्था का मामला हो, नक्सलवाद का मामला हो, भ्रष्टाचार का मामला हो, यहां के आदिवासी-मूलवासियों के हितों का मामला हो, विकास का मामला हो, प्रभात खबर चुप नहीं रहा. न सिर्फ रिपोर्टिग की बल्कि समाधान भी बताने का प्रयास किया. ऐसी पत्रकारिता के जरिये प्रभात खबर लगातार लोगों की आवाज बनता रहा.
अभी भी राज्य के हालात बेहतर नहीं हैं. यह किसी एक दल या एक सरकार की बात नहीं है. खलता है कि साथ बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड कैसे आगे बढ़ते गये, पर झारखंड उलझता ही चला गया. स्थायी सरकार के अभाव में, ठोस और कड़े फैसले नहीं लेने के कारण झारखंड दौड़ में पिछड़ता गया. बिहार को देखिए.
एक समय देश का सबसे पिछड़ा/अराजक राज्य तो बिहार ही था. उसने हार नहीं मानी. दस्तावेज बनवाया कि कैसे बिहार के साथ अन्याय हुआ है, अपनी ताकत दिखायी और केंद्र को विशेष सहायता के लिए मजबूर कर दिया. झारखंड के साथ भी तो वही हुआ जो बिहार के साथ हुआ है.
प्रभात खबर ने ऐसे मामलों को मुद्दा बनाया. विधानसभा की सीटों को बढ़ाने के लिए अभियान चलाया. ऐसा इसलिए किया ताकि राज्य में स्थायी सरकार (चाहे किसी की भी हो) बने और राज्य का भला हो. अपार खनिज हैं इस राज्य में, लेकिन किस काम के पड़े हैं, उद्योग नहीं लगते. सरकार फैसला नहीं लेती, बहाली नहीं होती, रोजगार नहीं मिलते, क्योंकि स्थानीय नीति नहीं बन सकी है. ऐसे में राज्य कैसे तरक्की करेगा? प्रभात खबर ने अपनी पत्रकारिता से चीजों को रास्ते पर लाने का प्रयास किया है और आगे भी करता रहेगा.
प्रभात खबर सिर्फ घटनात्मक खबरों को ही स्थान नहीं देता, समाज की कमियों को ठीक करने का भी प्रयास करता है. यही चीजें प्रभात खबर को अन्य अखबारों से अलग करती हैं. अगर राज्य में 46 हजार बच्चों की मौत हर साल हो रही है तो यह प्रभात खबर और यहां के लोगों (राजनीतिज्ञों/अधिकारियों/जनता) की सामूहिक जिम्मेवारी है कि इन मौतों को कम किया जाये. प्रभात खबर ने यूनिसेफ के साथ मिल कर यही तो अभियान चलाया है.
राज्य में आत्महत्याएं बढ़ी हैं, बच्चे तनाव में हैं. टेलीविजन और सिनेमा ने बच्चों की जिंदगी बदल दी है. बच्चों पर उसका प्रभाव/कुप्रभाव दिखता है. उनका आचरण/व्यवहार बदल रहा है. उनका व्यवहार आक्रामक हो रहा है. दुनिया की चकाचौंध में वे डूबते जा रहे हैं. अगर युवा पीढ़ी ऐसी भटकती रही, तो देश का क्या होगा,देश कैसा बनेगा, इसे प्रभात खबर महसूस करता है.
यही कारण है कि प्रभात खबर की टीम विशेषज्ञों के साथ स्कूल-स्कूल जाकर बच्चों की समस्याएं को समझती है, उनका दुख-दर्द साझा करती है और उसे दूर करने की पत्रकारिता करती है. इसका असर देर से ही सही, पर दिखता है. आज के अंक में टीवी, सिनेमा और बच्चे पर विशेष सामग्री दी जा रही है जो इस बात का संकेत है कि प्रभात खबर कैसी पत्रकारिता करता है.
बच्चे ही देश के भविष्य हैं. उन्हें बनाना/गढ़ना हम सभी का सामूहिक दायित्व है. हम यह दायित्व महसूस करते हैं. 30वें वर्ष में प्रवेश करने के अवसर पर हम यह वादा करते हैं कि प्रभात खबर सामान्य व्यक्ति की आवाज बना रहेगा चाहे इसकी कितनी बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.
अंत में प्रभात खबर को इस मुकाम पर पहुंचाने के लिए पाठकों, विज्ञापनदाताओं, हांकरों के प्रति आभार. प्रभात खबर की पूरी टीम (शहर से लेकर दूरदराज के इलाकों तक फैली) को बधाई और पाठकों से हमेशा की तरह सहयोग की अपेक्षा.