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उदार हैं हम, पर लाचार नहीं

फिर पांच बलिदान, फिर आंसुओं का सैलाब. वो कभी हमारी सीमा में घुस कर हमारे सैनिकों के सिर काट ले जाते हैं, तो कभी हमारे वीर सपूत शहीद कर दिये जाते हैं. परिजन बिलखते हैं, देश को गुस्सा आता है और दिल्ली शोक संदेश जारी करती है. कुछ दिनों के बाद यह उबाल ठंडा पड़ […]

फिर पांच बलिदान, फिर आंसुओं का सैलाब. वो कभी हमारी सीमा में घुस कर हमारे सैनिकों के सिर काट ले जाते हैं, तो कभी हमारे वीर सपूत शहीद कर दिये जाते हैं. परिजन बिलखते हैं, देश को गुस्सा आता है और दिल्ली शोक संदेश जारी करती है. कुछ दिनों के बाद यह उबाल ठंडा पड़ जाता है. हम व्यस्त हो जाते हैं, सरकार सुस्त हो जाती है.

सरकार की इसी निष्क्रियता से पड़ोसी मुल्क हमें कायर समझता है और बेखौफ होकर हमारे सीने पर वार करता है. पुंछ में हुए हमले के बाद शहीदों के परिजनों की तड़प पत्थर को भी विचलित कर सकती है. मगर सरकार पर इसका ज्यादा प्रभाव नजर नहीं आया. फिर घिसे-पिटे रूप में घटना की व्याख्या की गयी और पाकिस्तान को झूठ बोलने का मौका दिया गया.

पता नहीं ऐसी कौन-सी मजबूरी है कि हम कुर्बानियां देने को बाध्य हैं. बहुत कूटनीति हो चुकी. अब समझौतों का दौर नहीं रहा. अगर पाकिस्तान हमारी उदारता को कायरता समझता है, तो अब उसे अपनी ताकत दिखाने का समय है. शिकायत दर्ज कराने की आदत अब बदलनी होगी. उनके साथ संवाद की भाषा अब बदलनी होगी.

।। आलोक रंजन ।।

(हजारीबाग)

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