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समय गतिमान है वो तो चलता रहेगा

आप कैसे इंसान हैं? कैसे समाज हैं? कैसे देश हैं? यह आपकी दिनचर्या तय करती है. आपका स्वाभाव अलग हो सकता है, पर समय अलग नहीं हो सकता. संस्कार अलग हो सकते हैं, पर समय अलग नहीं हो सकता. आपका इतिहास अलग हो सकता है, पर समय अलग नहीं हो सकता. विजेता का समय भी […]

आप कैसे इंसान हैं? कैसे समाज हैं? कैसे देश हैं? यह आपकी दिनचर्या तय करती है. आपका स्वाभाव अलग हो सकता है, पर समय अलग नहीं हो सकता. संस्कार अलग हो सकते हैं, पर समय अलग नहीं हो सकता. आपका इतिहास अलग हो सकता है, पर समय अलग नहीं हो सकता. विजेता का समय भी वही होता है, जो कि पराजित का. जब आपका समय चल रहा, तो आपका व्यवहार तय करता है कि आप क्या हैं और आप की मंजिल कहां है. आप बुराई करते हैं या परनिंदा.. इसका प्रतिफल आपको ही मिलेगा. बदतमीजी करते हैं, तो शरीफ नहीं कहला सकते. रौब गांठते हैं, तो विनम्र नहीं हो सकते. तोड़-फोड़ करते हैं, तो रचनात्मक नहीं हो सकते.

क्योंकि सबके पास एक ही समय होता है. और, हां, एक ही समय में आप नकारात्मक और सकारात्मक दोनों नहीं हो सकते. बस, तय करना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है. उदाहरण के लिए एक ही व्यक्ति एक समय में हंसने के साथ मुंह नहीं फुला सकता. लेकिन एक ही समय में दो अलग-अलग लोगों में एक हंसता मिल जायेगा, तो दूसरा मुंह फुलाये हुए. इसको आस्तिक लोग विधाता की इच्छा बताते हैं, तो नास्तिक कुछ और ही बतायेंगे.

तो भाई, समय बड़ा बलवान होता है. इससे कोई नहीं बच पाया. फिर भी कोई सबक लेने को तैयार नहीं. जबकि सबको पता है कि जो आज है, वह कल नहीं होगा. सब नश्वर है. फिर इतना इतराना क्यों? कोई सत्ता के मद में चूर है, तो कोई सत्ता हीन समय के इंतजार में है. घात-प्रतिघात का दौर जारी है. लोग दो बातों पर ध्यान नहीं देते. एक-समय स्थिर नहीं होता. दो-समय कभी पीछे नहीं जाता. समय आगे बढ़ता रहता है. जो समय के साथ आगे बढ़ते हैं, वे आगे निकल जाते हैं. जो नहीं बढ़ते, वे पिछड़ जाते हैं. किसी के आगे बढ़ने या पिछड़ने में समय का कोई हाथ नहीं. उसका जिम्मेदार इंसान खुद होता है. दिलचस्प यह है कि जो पिछड़ जाते हैं, वे खुद को पिछड़ा नहीं मानते. लेकिन खुद मानने या ना मानने का क्या मतलब.. महत्व इस बात का है कि समय आपको क्या मानता है. समय की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह कुछ और नहीं होता. वह कुछ और बनना भी नहीं चाहता. समय किसी से कुछ नहीं लेता. वह सिर्फ देता है- एक दिन में 24 घंटे. महीने में 30 दिन. साल में 365 दिन.

यह कभी नहीं बदलते, न ही किसी की प्रतीक्षा करते हैं. बस समय आगे बढ़ता रहता है. कोई खुद को श्रेष्ठ मानता है, तो मानता रहे. अपने धर्म को, देश को, ईश्वर को श्रेष्ठ मानते हैं, तो दिल खोल कर मानें. लेकिन समय ऐसा कुछ नहीं मानता. यही वजह है कि कभी-कभी हम जो चाहते हैं, वह नहीं होता. फिर भी हम जिद पर अड़े रहते हैं. लेकिन समय निकलता जाता होता है. इस लिए ये पक्का मान लीजिए, जो आपको अच्छा या बुरा लगता है, समय उसे कभी महसूस नहीं करता. हां, आप दूसरे के साथ बुरा करेंगे, तो आप का बुरा होगा.समय दृष्टिवान है. समय गतिमान है. चलता रहेगा..चलता रहा है.

बृजेंद्र दुबे

प्रभात खबर, रांची

brijendra.dubey10@gmail.com

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