देशभक्ति की परिभाषा बदल चुकी है! निज–भक्ति ही अब देशभक्ति बन चुकी है. अपना विकास ही देश का विकास बन चुका है. देश को धर्म और जातिवाद के नाम पर बांट दिया जाता है और हम लोग खुशी–खुशी बंट जाते हैं और इसे भी देश के लिए अच्छा मानते हैं.
कोई मराठी है तो कोई बंगाली, कोई पंजाबी है तो कोई राजस्थानी, लेकिन भारतीय कोई नहीं. वैसे तो भारत में भ्रष्ट–तंत्र की जड़ें मजबूत हैं, लेकिन अगर कोई ईमानदार व्यक्ति इसे उखाड़ने की कोशिश करता है, तो हम जैसे कुछ एहसानफरामोश लोग लोकतंत्र की दुहाई देकर उसकी टांग खींचने में लग जाते हैं और अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उल्टी–सीधी बातें बनाते हैं.
वैसे भी इस देश का इतिहास रहा है कि हम आपस में ही लड़ते रहे हैं और हमेशा दुश्मनों ने इसका ही फायदा उठा कर हम पर हमला किया है. वैसे लोगों को हमारे देश का भविष्य बताया दिया जाता है, जिनका खुद का कोई वजूद नहीं होता है. उन्हें आज जो सुविधाएं दी जा रही हैं, उसका श्रेय भी हम जनता को ही जाता है. आज फिर से जरूरत है कि हम सब एकता और भाईचारा दिखायें.
।। मोहन एस कुमार ।।
(रांची)