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घरेलू रक्षा उत्पादन बढ़ाना है जरूरी

प्रधानमंत्री का यह संकल्प स्वागतयोग्यहै कि सरकार एक दशक के भीतर रक्षा-संबंधी साजो-सामान का 70 फीसदी हिस्सा देश में ही तैयार करना चाहती है. रक्षा उद्योग का ठोस आधार नहीं बना सकने के कारण भारत अपनी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है. हमारा देश रक्षा सामग्रियों का सबसे बड़ा आयातक है. यह चीन और […]

प्रधानमंत्री का यह संकल्प स्वागतयोग्यहै कि सरकार एक दशक के भीतर रक्षा-संबंधी साजो-सामान का 70 फीसदी हिस्सा देश में ही तैयार करना चाहती है. रक्षा उद्योग का ठोस आधार नहीं बना सकने के कारण भारत अपनी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है. हमारा देश रक्षा सामग्रियों का सबसे बड़ा आयातक है. यह चीन और पाकिस्तान से तीन गुना अधिक हथियार व अन्य वस्तुएं दूसरे देशों से खरीदता है.
वैश्विक रक्षा बाजार पर नजर रखनेवाले स्टॉकहोम इंटरनेशनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के मुताबिक 2004-08 से 2009-13 के बीच भारत द्वारा बड़े हथियारों की खरीद में 111 फीसदी की बढ़ोतरी हुई तथा कुल अंतरराष्ट्रीय हथियार आयात में इसका हिस्सा सात से बढ़ कर 14 फीसदी हो गया है. देश के रक्षा आयात का मौजूदा खर्च करीब 20 बिलियन डॉलर है, जो देश की अर्थव्यवस्था पर बड़ा बोझ है. इसकी तुलना में आंतरिक रक्षा उत्पादन मात्र सात बिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब है.
बजट का बोझ कम करने और औद्योगिक विकास में नये आयाम जोड़ने के लिहाज से घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ाने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है. प्रधानमंत्री ने उचित ही रेखांकित किया है कि घरेलू उत्पादन बढ़ने से बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे. उनकी यह घोषणा सराहनीय है कि सरकार रक्षा खरीद से संबंधित नीतियों में संशोधन कर देश में बने उत्पादों को प्राथमिकता देने पर विचार कर रही है. अपने पहले बजट में ही मोदी सरकार रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 26 से बढ़ा कर 49 फीसदी कर चुकी है.
पिछले दिनों रूस, अमेरिका और इजरायल ने इस दिशा में सहयोग का संकेत भी दिया है. अब रक्षा क्षेत्र में निवेश की राह में आड़े आ रही कमियों को दूर करने की जरूरत है. इस क्षेत्र में बीते 14 वर्षो में महज पांच मिलियन डॉलर का ही निवेश हो सका है. साथ ही निजी क्षेत्र को सार्वजनिक उपक्रमों के समकक्ष अवसर और स्थितियां मुहैया कराने की पहल करनी होगी. उम्मीद है कि सरकार सिर्फ घोषणाओं तक सीमित न रह कर निश्चित समय-सीमा के तहत रक्षा उत्पादन-प्रक्रिया को तेज कर सकेगी, ताकि इसका समुचित लाभ देश को मिल सके. उम्मीद करनी चाहिए कि आगामी बजट में इस संकल्प की कोई झलक मिलेगी.

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