यहां बात हो रही है अंगरेजी माध्यम के निजी विद्यालयों की. अनपढ़ मम्मी–पापा चाहते हैं कि मेरा बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़े, अंगरेजी स्कूल में पढ़े और फर्राटेदार अंगरेजी बोले–समझे. पर ऐसा हो नहीं पाता. क्योंकि इन रईसों के स्कूल में पहले मां–पिता की पढ़ाई का स्तर देखा जाता है. पहले ही राउंड में उपरोक्त वर्णित प्रकार के अभिभावक फेल हो जाते हैं. उसके बाद अभिभावक की कमाई का स्तर और उसकी सामाजिक हैसियत देखी जाती है.
क्या ऐसे बच्चे अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ सकते, जो इन सब से वंचित हों? क्या यह जरूरी है कि ऐसे बच्चे के अभिभावक उन्हें अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ा पायेंगे और इस वजह से वे आगे अच्छे से पढ़–लिख नहीं पायेंगे? अगर निजी स्कूलों की सोच ऐसी है, तो यह सरासर गलत है और यह प्रथा बंद होनी चाहिए. इस व्यवस्था का मैं खुद एक उदाहरण हूं, जो अच्छे नंबरों से पास हो चुका हूं. जबकि मेरे पापा गुजर गये हैं और मां अनपढ़ हैं. और एक खास बात यह कि इतिहास के पन्ने अगर उलट कर देखे जायें, तो यही साबित होगा कि प्रतिभा गरीबी और अमीरी की मोहताज नहीं होती और न ही वंशानुगत होती है.
।। पालुराम हेंब्रम ।।
(सलगाझारी)