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जवाबदेही के नाम पर खानापूरी न करें
बिहार, झारखंड और देश के अन्य राज्यों में आज भी नि:शक्तता ऐसे बच्चों के लिए अभिशाप बनी है, जो जन्मजात नि:शक्त हैं अथवा बाद में दुर्घटनावश नि:शक्त हुए हैं. नि:शक्त होने का अर्थ उनके व्यक्तित्व के साथ एक अपशब्द जुड़ जाने जैसा है. आज भी हमारे समाज से ऐसे अपशब्दों का समूल सफाया नहीं हो […]
बिहार, झारखंड और देश के अन्य राज्यों में आज भी नि:शक्तता ऐसे बच्चों के लिए अभिशाप बनी है, जो जन्मजात नि:शक्त हैं अथवा बाद में दुर्घटनावश नि:शक्त हुए हैं. नि:शक्त होने का अर्थ उनके व्यक्तित्व के साथ एक अपशब्द जुड़ जाने जैसा है. आज भी हमारे समाज से ऐसे अपशब्दों का समूल सफाया नहीं हो सका है.
यह कोई रोग नहीं है, बल्कि यह समाज का पूर्वाग्रह है, जो बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है. समाज की यह अवधारणा बच्चों और व्यक्ति के भविष्य में जटिलताओं को पैदा कर रही है. नि:शक्तों को सुविधा देने और पुनर्वास के नाम पर सरकार की ओर से महज खानापूरी की जा रही है. नि:शक्तों के पुनर्वास और उन्हें सुविधा दिलाने के लिए आवाज उठानेवालों की तादाद आज भी कम है. यदा-कदा आवाज उठती भी है, तो वह कुएं की आवाज की तरह दब कर रह जाती है.
सौरभ कुमार, पटना
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