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एक सपने का बिखर जाना

* मिस्र में हिंसा करीब डेढ़ साल पहले जब वर्ष 2011 का सूरज अस्त हो रहा था, दुनिया उम्मीदों से भरी हुई थी. ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया की तानाशाही सरकारों को जनता ने उखाड़ फेंका था. अरब जगत की जनता ने जिस तरह बदलाव के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद की थी, उसे विश्व इतिहास की […]

* मिस्र में हिंसा

करीब डेढ़ साल पहले जब वर्ष 2011 का सूरज अस्त हो रहा था, दुनिया उम्मीदों से भरी हुई थी. ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया की तानाशाही सरकारों को जनता ने उखाड़ फेंका था. अरब जगत की जनता ने जिस तरह बदलाव के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद की थी, उसे विश्व इतिहास की एक परिवर्तनकारी घटना करार दिया गया था. लेकिन आज क्रांति का वह ख्वाब बिखरता नजर आ रहा है. अरब जगत के प्रमुख देश मिस्र से खूनी हिंसा की खबरें लगातार आ रही हैं.

मिस्र में राष्ट्रपति की कुर्सी से बेदखल किये गये मोहम्मद मुर्सी के समर्थक और सेना आमने-सामने हैं. मिस्र काफी तेजी से एक गृह युद्ध जैसी स्थिति में प्रवेश करता दिख रहा है. क्या परिवर्तन की जिस घटना को अकसर ‘क्रांति’ की संज्ञा से नवाजा जाता है, उसकी नियति ही असफलता है? मिस्र का अनुभव हमें बता रहा है कि सिर्फ शासक से मुक्ति को ही क्रांति का नाम नहीं दिया जा सकता.

क्रांति का मकसद वास्तव में व्यवस्था परिवर्तन होता है. इसकी जड़ में नये सिरे से राष्ट्र-निर्माण की इच्छा छिपी होती है. इतिहास में भले तारीखों को याद किया जाता हो, लेकिन महत्व दिन का नहीं, उस दिन से शुरू होनेवाले सफर का होता है. मिस्र के पास यह मौका राष्ट्रपति पद पर मोहम्मद मुर्सी के शपथ ग्रहण के दिन आया था, लेकिन वह रास्ता भटक गया.

मुर्सी के शासन करने के तरीके और सेना के हस्तक्षेप ने इसमें भूमिका निभायी, लेकिन इसकी असल वजह शायद यह थी कि मिस्र की क्रांति के पास भविष्य का कोई खाका नहीं था. न ही ऐसा नेतृत्व था, जो क्रांति के आगाज को उसके अंजाम तक ले जा सके. उसके पास न तो फ्रांस की क्रांति की तरह न्याय, समता, लोकतंत्र और बंधुत्व का फलसफा था, न वह बोल्शेविक क्रांति की तरह मार्क्‍सवाद की मजबूत जमीन पर टिका था.

मिस्र की क्रांति में दिख रही अराजकता की जड़ों को वहां के लंबे सैन्य शासन में भी तलाशा जा सकता है, जिसके कारण वहां लोकतांत्रिक परंपराओ का विकास नहीं हो पाया. हाल के वर्षों में हुई कई क्रांतियां इसी तरह भटकती दिखी हैं. हालांकि भटकाव की वजह सभी जगह एक जैसी नहीं रही है.

हमारे पड़ोसी देश नेपाल में राजशाही से मुक्ति, जिसे जन-क्रांति का नाम दिया गया था, इसका अच्छा उदाहरण है. वहां लोकतंत्र राजनीतिक दलों की आपसी खींचतान का बंधक बन कर रह गया है. मिस्र और नेपाल में क्रांति की असफलता इस बात का प्रमाण है कि जनता क्रांति तो ला सकती है, लेकिन उसे सफल बनाना काफी चुनौती भरा काम होता है और पूरे देश को मिल कर यह जिम्मेवारी उठानी होती है.

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